भरोसे की शक्ति

राजस्थान के एक छोटे से गांव बंसीपुर में अर्जुन नाम का लड़का अपने माता-पिता के साथ रहता था। गांव छोटा था, पर उसकी कहानियां बड़ी थीं। खेतों और पहाड़ों के बीच बसे इस गांव के लोग साधारण जिंदगी जीते थे। पर अर्जुन असाधारण सपनों का मालिक था। उसकी आंखों में क्रिकेटर बनने का सपना था, लेकिन उसके पास न संसाधन थे, न कोई मार्गदर्शन।

अर्जुन का परिवार खेती-बाड़ी करता था। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। स्कूल जाने के बाद अर्जुन घर के कामों में हाथ बंटाता और फिर अपने पुराने से लकड़ी के बैट के साथ गांव के मैदान में अभ्यास करता। उसे देखकर गांव के लोग कहते, “इस लड़के के सपने बड़े हैं, पर इसके पास कुछ भी नहीं है।” लेकिन अर्जुन इन बातों की परवाह नहीं करता था। उसका एक ही मंत्र था—खुद पर भरोसा।

पहला कदम: मेहनत की राह पर

एक दिन गांव के मेले में अर्जुन ने चमचमाता हुआ क्रिकेट बैट देखा। उसे लगा कि अगर यह बैट उसके पास हो, तो उसका खेल और निखर जाएगा। लेकिन बैट की कीमत इतनी थी कि उसके माता-पिता उसे खरीदने में असमर्थ थे। अर्जुन ने हार नहीं मानी। उसने फैसला किया कि वह खुद पैसे कमाएगा। उसने गांव के मंदिर की सफाई की, दुकानदारों के सामान उठाने में मदद की, और कभी-कभी मजदूरी भी की। तीन महीने की कड़ी मेहनत के बाद उसने आखिरकार वह बैट खरीद लिया।

कठिन अभ्यास और पहला मौका

हर सुबह सूरज उगने से पहले, अर्जुन अभ्यास के लिए निकल जाता। गांव का मैदान उबड़-खाबड़ था, लेकिन अर्जुन ने उसे अपना रणक्षेत्र बना लिया था। उसने पुराने गेंदों और टूटे बल्लों से खेलना शुरू किया। धीरे-धीरे उसका खेल इतना अच्छा हो गया कि गांव के लोग भी उसकी तारीफ करने लगे।

एक दिन, पास के शहर में एक बड़े क्रिकेट टूर्नामेंट की घोषणा हुई। अर्जुन ने अपने दोस्तों से पैसे उधार लेकर उसमें हिस्सा लिया। टूर्नामेंट के पहले दिन, अर्जुन की बल्लेबाजी ने सबको चौंका दिया। उसने अकेले दम पर अपनी टीम को जीत दिलाई। टूर्नामेंट खत्म होने के बाद, एक कोच ने अर्जुन को शहर की क्रिकेट अकादमी में ट्रेनिंग के लिए आमंत्रित किया।

शहर की जिंदगी और नए संघर्ष

शहर आना अर्जुन के लिए किसी सपने के सच होने जैसा था। लेकिन यहां के माहौल ने उसे परेशान कर दिया। बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स, चमचमाते मैदान, और बेहतर ट्रेनिंग सुविधाएं देखकर अर्जुन खुद को कमजोर महसूस करने लगा। लेकिन उसने ठान लिया था कि वह हार नहीं मानेगा। उसने अपनी मां की कही बात याद की, “जब तक खुद पर भरोसा है, तब तक कोई भी हार तुम्हें रोक नहीं सकती।”

अर्जुन ने शहर में रहकर खुद को पूरी तरह खेल में झोंक दिया। दिन-रात अभ्यास करते हुए उसने अपने खेल को और बेहतर बनाया। उसे कभी-कभी दूसरे खिलाड़ियों से कम सुविधाएं मिलती थीं, लेकिन उसने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया।

सफलता की सीढ़ी

अर्जुन की मेहनत रंग लाई। उसे राज्य स्तरीय टीम में चुना गया। अपने पहले मैच में उसने ऐसा प्रदर्शन किया कि सबके दिल जीत लिए। वह सिर्फ अपनी टीम का ही नहीं, पूरे राज्य का पसंदीदा खिलाड़ी बन गया। इसके बाद उसकी जिंदगी में एक के बाद एक सफलता आने लगी।

कुछ सालों बाद, अर्जुन भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बन गया। उसकी बल्लेबाजी और आत्मविश्वास की हर जगह चर्चा होने लगी। गांव के लोग उसे गर्व से याद करते थे। वह हर बार एक बात दोहराता था, “खुद पर भरोसा रखो और मेहनत करो।”

जीवन का संदेश

अर्जुन की कहानी सिर्फ एक लड़के की नहीं, बल्कि हर उस इंसान की है, जो मुश्किलों के बावजूद अपने सपनों को सच करना चाहता है। उसने साबित कर दिया कि संसाधनों की कमी और परिस्थितियां आपके सपनों को रोक नहीं सकतीं, जब तक आपके पास “खुद पर भरोसा” है।

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