हर ठोकर एक सीख
शिवम, एक छोटे से गाँव का सामान्य लड़का, अपने सपनों के साथ बड़ा हुआ। बचपन से ही उसकी आँखों में चमक थी, और दिल में दृढ़ निश्चय। उसके पिता एक किसान थे, जिनकी आय इतनी नहीं थी कि शिवम की हर ख्वाहिश पूरी कर पाते। लेकिन शिवम ने कभी परिस्थितियों को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया।
गाँव के स्कूल से पढ़ाई पूरी करने के बाद, उसने शहर जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना देखा। यह सपना आसान नहीं था, लेकिन शिवम के हौसले मजबूत थे। उसने महसूस किया कि जब तक इंसान ठोकर नहीं खाता, तब तक उसे अपनी ताकत और सही दिशा का एहसास नहीं होता।
शहर की ओर कदम बढ़ाना
जब शिवम पहली बार गाँव छोड़कर शहर पहुँचा, तो वहाँ की चमचमाती दुनिया देखकर उसका दिल उत्साह से भर गया। लेकिन वह जल्दी ही समझ गया कि इस दुनिया में टिके रहना इतना आसान नहीं है। उसे दाखिले के लिए पैसे की ज़रूरत थी, और रहने-खाने का इंतजाम भी करना था।
पहली बार, उसने अपने जीवन में ठोकर खाई। वह कई कॉलेजों में गया, लेकिन आर्थिक स्थिति के कारण उसे किसी भी अच्छे कॉलेज में दाखिला नहीं मिला। यह पहली ठोकर थी। उसने सस्ते और कम नामी कॉलेज में दाखिला लिया। शिवम ने ठान लिया था कि वह अपने प्रयासों से इस ठोकर को अपनी जीत में बदलेगा।
संघर्ष की शुरुआत
शिवम को पढ़ाई के साथ-साथ अपनी जीविका चलाने के लिए भी काम करना पड़ा। उसने एक छोटे से कैफे में वेटर की नौकरी की। वहाँ उसे ग्राहकों के तीखे शब्द और ताने सहने पड़ते थे। लोग उसका मज़ाक उड़ाते और उसे “गाँव का लड़का” कहकर नीचा दिखाने की कोशिश करते। लेकिन हर बार जब भी वह अपमानित होता, उसका इरादा और भी मजबूत हो जाता।
दूसरी ठोकर: असफलता का सामना
एक दिन, उसने अपनी पहली परीक्षा दी। शिवम ने खूब मेहनत की थी, लेकिन परीक्षा में उसके नंबर कम आए। यह दूसरी ठोकर थी। उसे लगा कि शायद वह पढ़ाई और काम के बीच संतुलन नहीं बना पा रहा है। लेकिन फिर उसने खुद से वादा किया कि वह हार नहीं मानेगा। उसने अपनी दिनचर्या में बदलाव किया और अधिक ध्यान से पढ़ाई करनी शुरू की।
तीसरी ठोकर: विश्वासघात
शिवम को शहर में एक दोस्त मिला, जिसने उसे नौकरी में मदद करने का वादा किया। शिवम ने अपने पैसे उस पर भरोसा करके उसे दिए, लेकिन वह व्यक्ति धोखा देकर भाग गया। शिवम के पास न तो पैसे बचे थे और न ही कोई उम्मीद। यह तीसरी ठोकर थी। लेकिन शिवम ने इसे अपनी सबसे बड़ी सीख माना। उसने फैसला किया कि आगे से वह किसी पर आँख बंद करके भरोसा नहीं करेगा।
हर ठोकर का सबक
पहली : उसने सीखा कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हों, मेहनत और समर्पण से उन्हें बदला जा सकता है।
दूसरी : असफलता हमें हमारी कमजोरियाँ दिखाती है और आगे बढ़ने का रास्ता बताती है।
तीसरी : जीवन में विश्वास की आवश्यकता है, लेकिन आँख बंद करके किसी पर भरोसा करना सही नहीं।
सपनों की ओर बढ़ते कदम
शिवम ने अपनी पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और एक प्रतिष्ठित कंपनी में इंटर्नशिप हासिल की। धीरे-धीरे, उसने अपनी नौकरी पक्की की और अपने जीवन को बेहतर बनाया। उसकी मेहनत और लगन का परिणाम था कि वह अपने परिवार को आर्थिक तंगी से बाहर निकाल पाया।
गाँव वापसी और बदलाव की शुरुआत
शिवम ने अपने गाँव लौटकर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। उसने उन्हें यह सिखाया कि जीवन की ठोकरें हमें तोड़ने के लिए नहीं, बल्कि मजबूत बनाने के लिए होती हैं।
आज, शिवम अपने जीवन की हर ठोकर को गर्व से याद करता है। क्योंकि वही ठोकरें उसे उस मुकाम तक ले गईं, जहाँ वह आज खड़ा है।