सच्ची दोस्ती का अहसास
गाँव के छोटे से मोहल्ले में दो छोटी लड़कियाँ रहती थीं, जिनका नाम सिया और रिया था। दोनों बचपन से एक-दूसरे के साथ खेलती, पढ़ाई करती और हर खुशी गम को साझा करतीं। सिया का घर बहुत छोटा था, और उसकी माँ की तबियत हमेशा खराब रहती थी। रिया का घर थोड़ा बड़ा था, लेकिन वह बहुत ही सादा और दीन-हीन था। दोनों लड़कियाँ एक-दूसरे को अपनी बहन से भी ज्यादा समझतीं थीं।
एक दिन गाँव में बड़ा मेला होने वाला था। मेला गाँव के बाहर एक खुले मैदान में लगाया गया था। बच्चों और बड़ों में मेला देखने की बड़ी हलचल थी। सिया और रिया दोनों बहुत खुश थीं क्योंकि वह मिलकर मेले में जाने का सोच रही थीं। पर सिया की माँ का स्वास्थ्य बहुत खराब था और वह कुछ समय से बिस्तर पर ही पड़ी हुई थीं। सिया को बहुत घबराहट हो रही थी, क्योंकि वह चाहती थी कि वह भी मेले में जाए, लेकिन उसकी माँ का ध्यान कौन रखेगा?
रिया ने सिया को दिलासा दिया, “तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हारे साथ रहूँगी। तुम बेफिक्र होकर मेला देख सकती हो, और मैं तुम्हारी माँ का ध्यान रखूँगी।”
सिया को रिया पर पूरा विश्वास था। रिया ने सिया की माँ से कहा, “आप बिल्कुल आराम करें, मैं यहाँ हूं। आपको किसी भी मदद की जरूरत होगी तो मुझे बताइएगा।”
सिया ने थोड़ी राहत महसूस की और रिया की बात मानकर मेला देखने चली गई। मेला बहुत बड़ा था, और वहाँ पर हर तरफ रंग-बिरंगे झूले, चूड़ी वाले, खिलौनों की दुकानें, मिठाइयाँ और तमाम प्रकार की चीजें थीं। लेकिन सिया का मन पूरी तरह से मेला नहीं देख पा रहा था। उसका मन बार-बार घर पर जा कर अपनी माँ की हालत का अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा था।
कुछ ही घंटों बाद, सिया के पास रिया का संदेश आया। संदेश में लिखा था, “सिया, तुम्हारी माँ की तबियत और ज्यादा बिगड़ गई है। वह बहुत कमजोर महसूस कर रही हैं।”
सिया यह पढ़कर घबराहट से कांप उठी। वह जल्दी-जल्दी मेले को छोड़कर घर की ओर भागी। उसके कदम बढ़ते जा रहे थे, लेकिन उसका मन और भी ज्यादा डर से भरता जा रहा था। उसे लग रहा था कि वह अपनी माँ को अकेला छोड़कर आई थी, और अब वह क्या करेगी?
जब सिया घर पहुँची, तो उसने देखा कि रिया उसकी माँ के पास बैठी हुई थी। रिया ने सिया को देखकर मुस्कान के साथ कहा, “सिया, तुम परेशान मत हो, मैं यहाँ हूँ। तुम्हारी माँ को कोई तकलीफ नहीं होने दूँगी।”
सिया की आँखों में आंसू थे। उसने देखा कि रिया ने सच में उसकी माँ का पूरी तरह से ख्याल रखा था। सिया की माँ को भी रिया की मदद से बहुत आराम महसूस हुआ था। सिया ने रिया का धन्यवाद किया और कहा, “तुमने मेरे लिए जो किया, उसके लिए मैं शब्दों से तुम्हारा आभार व्यक्त नहीं कर सकती। तुम सच में मेरी सच्ची दोस्त हो।”
रिया हँसते हुए बोली, “सच्ची दोस्ती तो यही है कि एक-दूसरे के लिए खड़े रहें, चाहे कोई भी मुश्किल हो। तुम मेरे लिए कोई कठिनाई नहीं हो, सिया।”
इसके बाद सिया और रिया के बीच की दोस्ती और भी मजबूत हो गई। उन्होंने एक-दूसरे से वादा किया कि जब तक वे ज़िंदा रहेंगी, वे हमेशा एक-दूसरे का साथ देंगी, चाहे कोई भी परिस्थिति हो। दोनों ने समझ लिया कि सच्ची दोस्ती केवल अच्छे वक्त में नहीं, बल्कि बुरे वक्त में भी परखी जाती है।
कुछ दिनों बाद, सिया की माँ पूरी तरह से ठीक हो गईं, लेकिन अब सिया की सोच और समझ पूरी तरह से बदल चुकी थी। वह समझ चुकी थी कि रिया उसकी केवल दोस्त नहीं, बल्कि उसकी सच्ची साथी भी है। उसने रिया से कहा, “तुमने न सिर्फ मेरी माँ का ख्याल रखा, बल्कि मुझे भी यह सिखाया कि दोस्ती सिर्फ हंसी-खुशी में नहीं होती, बल्कि मुसीबतों और कठिनाइयों में भी होती है।”
रिया ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “सिया, सच्ची दोस्ती तो वही होती है, जिसमें हम एक-दूसरे का साथ न केवल खुशी में, बल्कि दुख में भी देते हैं।”
इसके बाद दोनों ने मिलकर हर समस्या का सामना किया। दोनों ने मिलकर गाँव के बच्चों के लिए एक छोटे से स्कूल की योजना बनाई, ताकि गाँव के सभी बच्चे पढ़ाई कर सकें। यह दोस्ती के लिए एक नया कदम था, क्योंकि रिया और सिया ने अपनी दोस्ती को केवल अपने तक सीमित नहीं रखा, बल्कि पूरे गाँव में फैलाने की कोशिश की।
समाप्त!