राधा स्वामी नाम कैसे पड़ा
राधा स्वामी सत्संग की स्थापना शिवदयाल सिंह जी ने की थी जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों को धार्मिक संदेश देना था शिवदयाल सिंह जी के बारे में अगर बात करें तो उनका जन्म साल 1818 में आगरा के एक वैष्णव परिवार में हुआ था इनके माता-पिता सिख धर्म को मानते थे गुरु नानक साहब में भी इनकी बहुत आस्था थी इस वजह से शिवा दयाल सिंह का रुझान भी सत्संग की और बड़ा शिवा दयाल सिंह हाथरस जिले के रहने वाले एक आध्यात्मिक गुरु तुलसी साहब के संपर्क में आए वो तुलसी साहिब से काफी प्रभावित हुए और Radha Soami सत्संग की शुरुआत की
राधा स्वामी शब्द का शाब्दिक अर्थ राधा को आत्मा और स्वामी को भगवान के रूप में संदर्भित करता है
वक्त बीतने के साथ शिवदयाल सिंह जी को ही लोग राधा स्वामी पुकारने लगे हालांकि कुछ अन्य विद्वानों के अनुसार यह नाम शिवदयाल सिंह की पत्नी के नाम पर पड़ा उनकी पत्नी नारायणी देवी को उनके अनुयाई राधा जी कहकर बुलाते थे इसलिए राधा जी के पति होने के करण शिवा दयाल सिंह जी को Radha Soami के नाम से संबोधित किया जान लगा शिवदयाल सिंह जी की मौत के बाद इनके अनुयायियों ने दो जगह पर राधा स्वामी सत्संग की शाखाएं स्थापित की पहले शाखा राधा स्वामी डेरा व्यास तो दूसरी शाखा को राधा स्वामी दयालबाग के नाम से जाना गया
इनमें से राधा स्वामी डेरा व्यास ने सबसे ज्यादा ख्याति प्राप्त की जिसकी स्थापना साल 1891 में Radha Soami सत्संग के अनुयाई और शिवदयाल सिंह के शिष्य जयमालसिंह जी ने अमृतसर के पास ब्याज नदी के किनारे डेरा गांव में की थी वहीं राधा स्वामी सत्संग दयालबाग की स्थापना राधा स्वामी सत्संग के पांचवें संत आनंद स्वरूप साहब ने साल 1915 में की थी
शिवदयाल सिंह जी के बाद इनके शिष्यों ने इस संप्रदाय को आगे बढ़ाया और धीरे-धीरे Radha Soami सत्संग को माने वाले की संख्या बढ़नी चली गई आज इस संप्रदाय को माने वालों की संख्या करोड़ में है और ये दुनिया के 90 देश में फैला हुआ है रूस, स्पेन, न्यूज़ीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, जापान, अफ्रीका समेत कई देश हैं
वहीं अगर अपने देश की बात करें तो यहां पर भी Radha Soami सत्संग की हजारों छोटी बड़ी शाखाएं हैं और बड़ी संख्या में लोग Radha Soami का अनुसरण भी करते हैं
Radha Soami मत की दयालबाग शाखा के वर्तमान आचार्य डॉक्टर प्रेम शरण जी सत्संगी हैं वहीं इसकी व्यास शाखा के वर्तमान आचार्य बाबा गुरिंदर सिंह जी है Radha Soami पेंट को कम्युनिटी के तोर पर विकसित किया गया है जहां सभी लोग एक साथ रहते हैं सत्संग करते हैं और सात्विक जीवन बिताते हैं ये लोग अपनी जरूर के सभी समान भी आमतौर पर खुद ही उत्पादित करते हैं यहां कुछ कारखाने हैं जिसमें सत्संगी
मेहनत करते हैं Radha Soami संप्रदाय की अपनी शिक्षक संस्थाएं और इंजीनियरिंग कॉलेज भी हैं और इसके अनुयाई काफी बड़े पड़ा पर भी रहे हैं
राधा स्वामी संस्था के प्रमुख गुरु:
Jaimal Singh – 1878-1903
Sawan Singh – 1903-1948
Jagat Singh – 1948-1951
Charan Singh – 1951-1990
Gurinder Singh – 1990-Present
Jasdeep Singh Gill – 2024 (Satguru Designate)
Radha Soami संस्था के सामाजिक कार्य:
शिक्षा: संस्था शिक्षा के प्रचार में सक्रिय है और कई स्कूल और कॉलेज चलाती है।
स्वास्थ्य: संस्था स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करती है और कई अस्पतालों का संचालन करती है।
पर्यावरण: संस्था पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करती है और वृक्षारोपण अभियान चलाती है।
करू बेनती दो कर जोरी
अरज सुनो राधा स्वामी मोरी
सत पुरुष तुम सतगुरु दाता
सब जीवन के पित और माता
दया तार अपना कर लीज
काल जाल से न्यारा की जय
सतयुग त्रेता द्वापर बीता
काहु ना जानी शब्द की रीता
कल जुग में स्वामी दया बचारी
प्रगट करके शब्द पुकारी
जीव काज स्वामी जग में आए
ब सागर से पार लगाए
तीन छोड़ चौथा पद दीना
सतनाम सतगुरु गत चीना
जगमग जोत होत जियारा
गगन सोत पर चंद्रन आरा
सेत सिंहासन शत्र बिराज
अनहद शबद गव तुन गाज
शर अक्षर न अक्षर अपारा
बेंती करे जहां दास तुम्हारा
लोक अलोक पाऊ सुख दामा
चरण शरण दीज बरामा
लोक अलोक पाऊ सुख दमा
चरण शरण दीज विस रामा
करू बेनती दो कर जोरी
करो बेनती दो कर जोरी
अरज सुनो राधा स्वामी मोरी
अर्ज सुनो राधा स्वामी मोरी