गांव पिशाचपुर, जिसे कई लोग “पिशाचनाई का गांव” कहते थे, अपने डरावने रहस्यों के लिए दूर-दूर तक मशहूर था। यह गांव घने जंगलों के बीच स्थित था, और सूरज ढलते ही लोग अपने घरों में छिप जाते थे। यहां के बुजुर्गों का कहना था कि गांव के पास के कुएं में एक पिशाचनाई (एक राक्षसी आत्मा) का वास था, जो रात के अंधेरे में बाहर निकलती थी।
रहस्यमय घटनाओं की शुरुआत
यह घटना उस दिन शुरू हुई जब करण, एक युवा लड़का, अपने दोस्तों के साथ जंगल में गया। करण को रहस्यमय चीजों में बहुत दिलचस्पी थी। गांव के लोग अक्सर चेतावनी देते थे कि कुएं के पास मत जाना, लेकिन करण ने इसे एक पुरानी कहानी मानकर अनसुना कर दिया।
उस रात, जब करण और उसके दोस्त कुएं के पास पहुंचे, उन्हें वहां से अजीब-सी फुसफुसाहट सुनाई दी। आवाज़ें इतनी डरावनी थीं कि उसके दोस्त भाग खड़े हुए, लेकिन करण ने हिम्मत करके कुएं के अंदर झांकने की कोशिश की। तभी अचानक एक ठंडी हवा का झोंका आया और करण बेहोश हो गया।
अजीब बदलाव
अगली सुबह, करण अपने घर वापस तो आया, लेकिन अब वह पहले जैसा नहीं था। उसकी आंखें लाल हो चुकी थीं, और वह किसी से बात नहीं करता था। गांववालों का कहना था कि पिशाचनाई ने उसे अपने वश में कर लिया है। कुछ दिनों बाद गांव में अजीब-अजीब घटनाएं होने लगीं। जानवर गायब हो रहे थे, और गांव के लोग रात को किसी के चीखने-चिल्लाने की आवाजें सुनते थे।
सच्चाई का पता लगाना
गांव के एक बुजुर्ग, पंडित जगन्नाथ, को इस घटना पर शक हुआ। उन्होंने करण को बुलाया और उससे बात करने की कोशिश की। करण ने अजीब तरीके से मुस्कुराते हुए कहा, “आप मेरे बारे में ज्यादा नहीं जानना चाहेंगे।” यह सुनकर पंडित जी को यकीन हो गया कि पिशाचनाई ने करण पर कब्जा कर लिया है।
पिशाचनाई का इतिहास
पंडित जगन्नाथ ने गांववालों को बताया कि कई साल पहले, इस कुएं में एक महिला को जिंदा जलाया गया था। वह महिला, जिसका नाम पिशाचनाई था, काली शक्तियों की साधना करती थी। उसकी मौत के बाद उसकी आत्मा कुएं में बस गई। वह उन लोगों को अपना शिकार बनाती थी जो कुएं के करीब जाते थे।
करण को बचाने की कोशिश
गांववालों ने पंडित जी की मदद से करण को बचाने का फैसला किया। उन्होंने आधी रात को एक यज्ञ किया। यज्ञ के दौरान, करण की हालत बिगड़ने लगी। वह जोर-जोर से चिल्ला रहा था और कह रहा था, “तुम लोग मुझे यहां से नहीं निकाल सकते!” उसकी आवाज इतनी डरावनी थी कि कई लोग डरकर भाग गए। लेकिन पंडित जी ने हिम्मत नहीं हारी और मंत्रोच्चार करते रहे।
अंतिम संघर्ष
यज्ञ खत्म होते ही एक तेज रोशनी कुएं से निकली, और अचानक करण बेहोश होकर गिर पड़ा। गांववालों ने देखा कि कुएं से एक परछाई बाहर निकली और जंगल की ओर चली गई। पंडित जी ने कहा, “पिशाचनाई अब इस गांव से चली गई है, लेकिन हमें सावधान रहना होगा।”
करण की वापसी
करण को होश आया तो वह सबकुछ भूल चुका था। उसे याद नहीं था कि उसके साथ क्या हुआ था। गांववालों ने उसे सब कुछ बताया, लेकिन करण ने इस बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं की।
गांव की शांति
उस घटना के बाद पिशाचपुर फिर से शांत हो गया। लोग अब कुएं के पास नहीं जाते थे और सूरज ढलने के बाद भी घरों से बाहर नहीं निकलते थे।
लेकिन कुछ लोग कहते हैं कि कभी-कभी रात को जंगल से अजीब फुसफुसाहट अब भी सुनाई देती है। शायद, पिशाचनाई पूरी तरह गई नहीं थी।
गांव पिशाचपुर में सबकुछ सामान्य लग रहा था। लोग अपने रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो गए थे, और पिशाचनाई की कहानी सिर्फ डरावने किस्सों तक सीमित हो चुकी थी। लेकिन जो शांत पानी के नीचे छिपा हो, वह कभी-कभी भयंकर तूफान का संकेत देता है।
नई शुरुआत, नया डर
एक साल बीत चुका था। करण अब पूरी तरह सामान्य लग रहा था। वह गांव की खेतों में काम करता और बच्चों के साथ खेलता। लेकिन एक दिन, गांव के छोटे बच्चों ने जंगल में एक रहस्यमयी गुड़िया पाई। वह गुड़िया पुराने कपड़े में लिपटी हुई थी और उसके बाल जले हुए लग रहे थे। बच्चों ने इसे एक मजाक समझा और उसे गांव में ले आए।
अजीब घटनाओं का सिलसिला
उस रात से, गांव में फिर से अजीब घटनाएं होने लगीं। लोगों के घरों में चीजें अपने-आप गिरने लगती थीं। रात को अचानक ठंडी हवा का झोंका आता और खिड़कियां ज़ोर से बजने लगतीं। कई लोगों ने सपने में एक औरत को देखा, जो काली साड़ी पहने हुए थी और उसके जले हुए चेहरे से डरावनी मुस्कान झलक रही थी।
सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात तब हुई, जब करण के घर के बाहर उसी गुड़िया को पाया गया। उसके बाल जलते हुए दिख रहे थे, लेकिन वह राख में नहीं बदल रही थी। करण को समझ में आ गया कि यह सब पिशाचनाई का काम है।
करण की बेचैनी
करण अब रोज़ रात को डरावने सपने देखने लगा। उसे लगता था कि कोई उसे बुला रहा है। कभी-कभी वह आधी रात को नींद से उठता और खुद को जंगल की ओर जाते हुए पाता। वह इस बात को छिपाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी मां ने उसे एक रात कुएं की ओर जाते हुए देख लिया।
पंडित जगन्नाथ की वापसी
गांववाले फिर से पंडित जगन्नाथ के पास गए। पंडित जी ने कहा, “पिशाचनाई अभी पूरी तरह नहीं गई थी। वह बस कमजोर हुई थी। अब वह फिर से ताकतवर हो रही है, और यह सब उस गुड़िया की वजह से हुआ है। हमें इसे खत्म करने के लिए कुछ बड़ा करना होगा।”
जंगल का रहस्य
पंडित जी ने करण और कुछ युवाओं को लेकर जंगल की ओर जाने का फैसला किया। उन्होंने बताया कि पिशाचनाई की असली शक्ति एक पुराने मंदिर में छिपी हुई है, जो इस जंगल के भीतर है। वहां जाने से ही उसे हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है।
जंगल में प्रवेश करते ही, सभी को भारी सन्नाटा और ठंड का अहसास हुआ। रास्ते में कई बार उन्हें ऐसा लगा जैसे कोई उनके पीछे चल रहा हो। करण के भीतर डर बढ़ता जा रहा था, लेकिन उसने अपनी हिम्मत नहीं खोई।
मंदिर का सामना
आखिरकार, वे एक खंडहर मंदिर पहुंचे। मंदिर के बीचों-बीच एक पत्थर की मूर्ति थी, जिसके पास एक जलता हुआ दीया रखा था। पंडित जी ने कहा, “यह दीया उसकी आत्मा का प्रतीक है। इसे बुझाना होगा, लेकिन यह आसान नहीं होगा।”
जैसे ही पंडित जी ने मंत्र पढ़ना शुरू किया, मंदिर में तेज़ हवा चलने लगी। दीवारों पर काले धब्बे बनने लगे, और करण को लगा जैसे किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा हो। वह पलटा, लेकिन वहां कोई नहीं था।
अंतिम लड़ाई
अचानक, पिशाचनाई का भूत मंदिर के अंदर प्रकट हुआ। उसका चेहरा जले हुए मांस जैसा था, और उसकी आंखें लाल अंगारों की तरह चमक रही थीं। उसने करण को देखकर कहा, “तुमने मुझे धोखा दिया था। अब मैं तुम्हें छोड़ूंगी नहीं।”
करण ने अपनी सारी हिम्मत जुटाई और पंडित जी की बात मानते हुए दीये की ओर बढ़ा। जैसे ही उसने दीये को छूने की कोशिश की, पिशाचनाई ने उस पर हमला किया। करण गिर पड़ा, लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने दीये पर पानी डाल दिया।
पिशाचनाई का अंत
जैसे ही दीया बुझा, पिशाचनाई जोर से चीखती हुई गायब हो गई। मंदिर शांत हो गया, और एक अजीब-सी हल्की रोशनी फैल गई। पंडित जी ने कहा, “अब वह हमेशा के लिए चली गई है। लेकिन हमें यह सीखना होगा कि अंधविश्वास और लालच से बचना चाहिए।”
गांव में शांति
उस रात के बाद, गांव फिर से शांत हो गया। करण और बाकी लोग जंगल से लौटे, लेकिन अब कोई भी उस मंदिर या कुएं के पास नहीं जाता था।
लेकिन आज भी, अगर किसी बच्चे की गुड़िया खो जाती है, तो गांववाले कहते हैं, “पिशाचनाई अब भी हमारी कहानियों में जिंदा है।”