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पुरानी हवेली की रात

पुरानी हवेली की रात

साल 1985 की एक ठंडी और सर्द रात थी। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में पुरानी हवेली के बारे में अजीब-अजीब कहानियाँ मशहूर थीं। लोग कहते थे कि वहाँ रात के समय अजीब आवाजें आती हैं, और कई लोगों ने दावा किया था कि उन्होंने वहाँ भूत-प्रेत देखे हैं। गाँव के बच्चों और बुजुर्गों को उस हवेली के पास जाने की मनाही थी।

रामेश्वर का जिद्दी स्वभाव
गाँव में एक युवक था, रामेश्वर। वह निडर और जिज्ञासु स्वभाव का था। उसे इन कहानियों पर यकीन नहीं था। उसने ठान लिया कि वह इस रहस्य को खुद सुलझाएगा। गाँव के बुजुर्गों ने उसे समझाने की कोशिश की, पर उसने किसी की न सुनी।

एक रात, चाँद की हल्की रोशनी में, रामेश्वर ने अपनी टोर्च, एक डंडा और एक पूजा का ताबीज लेकर हवेली जाने का निश्चय किया।

हवेली का डरावना माहौल
हवेली गाँव से लगभग दो किलोमीटर दूर थी। रात के सन्नाटे में रामेश्वर हवेली की ओर बढ़ा। हवेली तक पहुँचने में उसे आधा घंटा लगा। दूर से हवेली खंडहर जैसी लग रही थी। दीवारों पर बेलें चढ़ी थीं और दरवाजे जर्जर हो चुके थे। हवेली के पास पहुँचते ही उसे महसूस हुआ कि जैसे कोई उसे देख रहा हो।

अंदर का सन्नाटा
रामेश्वर ने दरवाजे को धक्का देकर खोला। अंदर घुप्प अंधेरा था। उसने टोर्च जलाई और चारों तरफ देखा। हवेली का हर कोना धूल और मकड़ी के जालों से भरा हुआ था। एक हल्की-सी हवा का झोंका आया, और कमरे का पर्दा अपने आप हिलने लगा।

पहला अजीब अनुभव
हवेली के पहले कमरे में पुरानी पेंटिंग्स और टूटे हुए फर्नीचर थे। दीवारों पर राजा-रानी और योद्धाओं की तस्वीरें थीं। अचानक रामेश्वर को ऐसा लगा जैसे कोई परछाई उसके पीछे से गुजरी। उसने पीछे मुड़कर देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।

दीवारों पर खून के निशान
जैसे-जैसे वह अंदर बढ़ता गया, उसने देखा कि दीवारों पर कुछ धब्बे थे। जब उसने टोर्च की रोशनी से गौर से देखा, तो वे खून के सूखे निशान जैसे लग रहे थे। उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई, लेकिन उसने खुद को संभाला।

महिला की करुण आवाज
आगे बढ़ते हुए उसे एक हल्की-सी आवाज सुनाई दी। यह आवाज एक महिला की थी, जो मदद के लिए पुकार रही थी। वह आवाज धीरे-धीरे तेज़ होने लगी। “मुझे बचाओ… मुझे बचाओ…” रामेश्वर ने आवाज का पीछा किया और हवेली के पिछले हिस्से में पहुँच गया।

पुरानी अलमारी का रहस्य
पिछले कमरे में एक पुरानी अलमारी रखी हुई थी। अलमारी धूल और जालों से ढकी थी। रामेश्वर ने उसे खोला, तो अंदर एक पुरानी डायरी और एक चाबी मिली। डायरी को खोलते ही एक पन्ना नीचे गिरा। उस पर लिखा था:
“मैं सावित्री हूँ। इस हवेली में मेरे साथ अन्याय हुआ है। मेरी आत्मा तब तक मुक्त नहीं होगी, जब तक मेरे हत्यारे को सज़ा नहीं मिलेगी।”

भयानक साया
डायरी पढ़ते ही कमरे की खिड़कियाँ अपने आप खुल गईं और ठंडी हवा का तेज़ झोंका आया। रामेश्वर ने देखा कि एक सफेद साड़ी पहने, बिखरे बालों वाली एक परछाई उसके सामने खड़ी थी। उसकी आँखें लाल थीं और वह रामेश्वर को घूर रही थी।

सावित्री की व्यथा
महिला की आत्मा ने कहा, “मैं इस हवेली की मालकिन थी। मेरे पति ने लोभ के कारण मुझे मार डाला और मेरे शरीर को हवेली के तहखाने में दफना दिया। मेरी आत्मा न्याय की तलाश में भटक रही है। अगर तुम सच में बहादुर हो, तो मेरे शरीर को बाहर निकालकर गंगा में प्रवाहित करो।”

तहखाने का दरवाजा
रामेश्वर ने चाबी उठाई और तहखाने के दरवाजे की ओर बढ़ा। जब उसने दरवाजा खोला, तो नीचे एक सीढ़ी दिखाई दी। तहखाने में जाने पर उसे एक पुराने संदूक में सावित्री का कंकाल मिला।

आत्मा की मुक्ति
अगले दिन रामेश्वर ने गाँववालों को सबकुछ बताया। गाँव के पंडित और बुजुर्गों की मदद से सावित्री के कंकाल को गंगा किनारे ले जाकर विधि-विधान से उसका अंतिम संस्कार किया गया।

उस दिन के बाद हवेली में कोई अजीब घटना नहीं घटी। रामेश्वर गाँव का हीरो बन गया और सावित्री की आत्मा को शांति मिल गई।

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