सच्ची कहानियाँ

पिता और बेटी का अटूट बंधन

पिता

पिता और बेटी का अटूट बंधन

गांव के किनारे एक छोटा सा घर था, जिसमें रामु और उसकी बेटी, सिया, रहते थे। रामु एक मेहनती किसान था, जो अपने खेतों में दिन-रात काम करता था। उसकी पत्नी का निधन कई साल पहले हो गया था, और तब से वह अकेले ही सिया का ख्याल रखता आ रहा था। सिया की उम्र अब दस साल थी,

हर सुबह, सूरज की पहली किरण के साथ रामु उठता और सिया को जगाता। “सिया, उठो! सूरज चढ़ने वाला है, खेतों में काम करना है,” वह आवाज लगाता। सिया नींद में ही मुस्कराते हुए उठ जाती। उसे पता था कि पिता के साथ खेतों में जाना उसे बहुत पसंद था।

पिता और बेटी का रिश्ता गहरा था। रामु ने हमेशा सिया को अपने सपनों की बातें सुनाई थीं। “बेटी, तुम पढ़ाई में अच्छी करोगी, तो तुम जो चाहोगी वो कर पाओगी। मैं चाहता हूं कि तुम एक दिन अपने सपनों को पूरा करो,” रामु ने एक दिन कहा।

सिया ने पिता की आँखों में चमक देखी और कहा, “पापा, मैं चाहती हूं कि मैं एक डॉक्टर बनूं। मैं गांव के लोगों की मदद करना चाहती हूं।”

रामु ने गर्व से मुस्कराते हुए कहा, “बिल्कुल, मेरी बहादुर बेटी! तुम्हें अपने सपने पूरे करने के लिए मेहनत करनी होगी। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं।”

दिन बीतते गए, और सिया ने स्कूल में अच्छे अंक लाने शुरू कर दिए। रामु ने कभी उसे पढ़ाई में बाधा नहीं बनने दिया। वह हमेशा उसके लिए समय निकालता, चाहे काम कितना भी क्यों न हो। शाम को, वे साथ में पढ़ाई करते, और रामु उसे जीवन की सीख देते।

एक दिन, सिया ने कहा, “पापा, मैं अपने दोस्तों के साथ खेलना चाहती हूं, लेकिन मुझे डर लगता है कि वे मुझे गरीब समझेंगे।”

रामु ने उसकी आँखों में देखा और कहा, “बेटी, गरीबी केवल एक स्थिति है, यह तुम्हारी पहचान नहीं। जो तुम हो, वो तुम्हारी मेहनत और प्रतिभा है। तुम हमेशा अपने आप पर गर्व करो।”

सिया ने पिता की बातों को ध्यान से सुना और धीरे-धीरे उसने अपने डर को पार किया। वह अपने दोस्तों के साथ खेलती और अपनी पढ़ाई के लिए भी मेहनत करती रही।

एक दिन, स्कूल में खेलकूद प्रतियोगिता आयोजित की गई। सिया ने दौड़ में भाग लेने का फैसला किया। उसने अपने पिता से कहा, “पापा, मैं दौड़ में भाग लेना चाहती हूं। क्या आप मेरे लिए आएंगे?”

रामु ने मुस्कराते हुए कहा, “बिल्कुल, मैं तुम्हारे लिए वहां रहूंगा। तुम्हारे लिए हमेशा!”

प्रतियोगिता के दिन, रामु सिया को उत्साहित करने के लिए स्कूल पहुंचा। सिया ने दौड़ में भाग लिया और अंत में उसने पहला स्थान प्राप्त किया। उसने खुशी से अपने पिता की ओर देखा, जो तालियाँ बजाते हुए खड़े थे।

“मैंने किया, पापा!” उसने खुशी से चिल्लाया। रामु ने उसे गले लगाया और कहा, “मेरी बेटी, तुमने बहुत मेहनत की और ये तुम्हारी सफलता है!”

इसके बाद, सिया ने अपनी पढ़ाई पर और ध्यान देना शुरू किया। उसकी मेहनत रंग लाई, और उसने अगले साल भी अच्छे अंक प्राप्त किए।

कुछ साल बीते, और सिया अब बारहवीं कक्षा में थी। उसकी तैयारी अपने सपनों के डॉक्टर बनने के लिए जारी थी। लेकिन इस बार, उसे एक नया संघर्ष करना पड़ा। उसके स्कूल की फीस बढ़ गई थी, और रामु की आय कम हो गई थी।

एक दिन, रामु ने सिया से कहा, “बेटी, तुम्हारी पढ़ाई बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन इस समय हम थोड़ी मुश्किल में हैं। हमें कुछ समय के लिए तुम्हारी पढ़ाई रोकनी पड़ सकती है।”

सिया का दिल टूट गया। उसने पिता की आँखों में चिंता देखी। “नहीं, पापा! मैं पढ़ाई छोड़ने के लिए तैयार नहीं हूं। मैं किसी तरह से पढ़ाई जारी रखूंगी। मैं कुछ ट्यूशन ले लूंगी,” उसने कहा।

रामु ने उसकी दृढ़ता को देखा और कहा, “बेटी, मैं तुमसे बहुत गर्व महसूस करता हूं। लेकिन तुम्हें अपने स्वास्थ्य का भी ख्याल रखना है। तुम छोटी उम्र में इतना बड़ा बोझ नहीं उठा सकती।”

“पापा, मैं यह कर सकती हूं। आपने मुझे हमेशा सिखाया है कि मेहनत से ही सफलता मिलती है। मैं अपनी पढ़ाई के लिए कुछ भी करूंगी,” सिया ने दृढ़ता से कहा।

रामु ने अपनी बेटी की इच्छाशक्ति को देखकर समझ लिया कि उसकी बेटी अपने सपने के लिए कितनी तैयार है। वह सोचने लगा कि कैसे वह सिया की मदद कर सकता है।

वह पास के एक खेत में काम करने लगा, ताकि सिया की पढ़ाई में कोई रुकावट न आए। दिन-रात काम करते हुए, उसने अपनी बेटी के लिए पैसे इकट्ठा किए।

सिया ने अपनी ट्यूशन कक्षाओं में भाग लिया और अपनी मेहनत से अच्छे अंक प्राप्त किए। जब उसका परिणाम आया, तो उसने कक्षा में टॉप किया। उसकी मेहनत और पिता के समर्थन ने उसे सफल बनाया।

अंततः, सिया ने मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया। जब वह अपने पहले दिन कॉलेज गई, तो उसने अपने पिता की ओर देखा, जो गर्व से उसे देख रहे थे।

“पापा, आपने हमेशा मेरा साथ दिया। मैं आपको कभी निराश नहीं करूंगी,” सिया ने कहा।

रामु ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैंने हमेशा तुम्हें विश्वास किया है। तुम मेरी सबसे बड़ी खुशी हो। अपने सपनों को पूरा करो!”

इस तरह, पिता और बेटी का अटूट बंधन हर मुश्किल को पार करते हुए और मजबूत होता गया। सिया ने अपने पापा के सपनों को भी अपने सपनों में बदल दिया, और उन्होंने मिलकर अपने रिश्ते को एक नई पहचान दी।

और इस तरह, रामु और सिया के प्यार की कहानी गांव में मिसाल बन गई, जिसमें पिता का त्याग और बेटी का साहस, दोनों की जीत का प्रतीक बन गया।

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