Religion

नवरात्रि के नौ दिनों के उत्सव के पीछे का क्या कारण है हम दशहरा क्यों मनाते हैं

हम दशहरा क्यों मनाते हैं

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि दशहरा एक ऐसा त्योहार है जहां हम बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने के लिए मां दुर्गा की पूजा करते हैं यह त्योहार नौ दिनों तक चलता है जिसे नवरात्रि के रूप में जाना जाता है और दसवें दिन को विजयदशमी के रूप में जाना जाता है
हिंदू धर्म में देवी दुर्गा शक्ति मातृत्व सुरक्षा युद्ध और स्त्रीत्व के अवतार का प्रतीक है और वेदों में देवी दुर्गा को अक्सर मां शक्ति महिषासुर मर्दिनी देवी और चंडी के रूप से जाना जाता है कई सदियों से हम पूरे देश में दुर्गापूजा मनाते आ रहे हैं लेकिन देवी दुर्गा की रचना से जुड़ी कहानी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं
नवरात्रि के नौ दिनों के उत्सव के पीछे का क्या कारण है हम दशहरा क्यों मनाते हैं आइए आज हम भारतीय इतिहास के सबसे आकर्षक कहानियों में से एक के बारे में चाहेंगे जो है देवी दुर्गा कहानी है
आरंभ करते हैं
एक बार महिषासुर नाम का एक असुर था जिसे भैंस रूपी दानव की कहते हैं महिषासुर ने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की और अमरता और शक्ति का आशीर्वाद पाने की कामना की महिषा सुर हाथ जोड़कर घुटनों के बल नीचे बैठा और ब्रह्माजी से वर मांगा कि वह किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा न मारा जाए भगवान ब्रह्मा ने अपने भक्तों की ओर देखा और तथास्तु कहा इसके बाद अत्याचारी का अहंकार और बढ़ गया अपनी अमरता के नशे में महिषा सुर उसकी अवज्ञा करने वाले किसी भी व्यक्ति को मार डालता महिषा सुर यह वरदान से प्राप्त उस असीम शक्ति का किया कि उसने अपनी राक्षसों की सेना के साथ स्वर्ग की ओर कूच किया और इंद्रदेव के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया वहीं इंद्रदेव भी सफेद हाथी में बैठकर रक्षकों के खिलाफ युद्ध में उतर गए
ईश्वरीय शक्तियां होने के बावजूद इंद्रदेव और उनके देवताओं की सेना हार गई इन त्रिदेव महिषा सुर से युद्ध हार गए और उन्हें स्वर्ग की गद्दी को छोड़ना पड़ा पहले पृथ्वी और स्वर्ग पर महिषासुर का अधिकार हो गया और अब कोई भी महिषा सुर के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं करता है तो आपको क्या लगता है स्वर्ग के देवताओं ने इस समस्या से निपटने के लिए क्या किया होगा सब कुछ हार जाने के बाद स्वर्ग के देवता त्रिदेव यानी भगवान ब्रह्मा विष्णु और भगवान शिव की मदद लेने का महिषासुर से बदला लेने के लिए यह एक निर्णायक पल था ब्रह्मांड में संतुलन बहाल करने के लिए त्रिदेव ने अपने ऊर्जा का उपयोग 1077 देवी दुर्गा जो आदिशक्ति की अवतार है उनको बनाने के लिए किया वह उपस्थित सभी देवता देवी की आज्ञा से चकाचौंध हो गए और सभी ने देवी दुर्गा को अपने हथियार समर्पित कर उन्हें सचेत किया भगवान विष्णु ने उन्हें शक्तिशाली सुदर्शन चक्र दिया भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कमंडल दिया और भगवान शिव ने अपना त्रिशूल दिया देवी दुर्गा के पास अब सभी दिव्य विभूतियों द्वारा दिए गए शास्त्र थे
अब और विमानों के सिर पर सवार होकर महिषा सुर के राज्य की ओर चल पड़ी थी शेर की दहाड़ इतनी विशाल कि समुद्र का अपने लगा पहाड़ों से इलावा बह निकला और महिषासुर ने भी उस कंपनी को महसूस किया दुर्गा महिषासुर के द्वार पर पहुंच गई पर भैंस रूपी दानव इससे भयभीत नहीं हुआ और उसने अपनी सेना को उन पर हमला करने का आदेश दिया और इस प्रकार हिंदू पौराणिक कथाओं में लड़ा जाने वाला सबसे भीषण युद्ध शुरू हुआ देवी दुर्गा ने अपनी आंखें बंद कर ली और दानव सेना से युद्ध करने के लिए मिट्टी से अपनी एक विशाल सेना बनाए महिषासुर ने देवी दुर्गा को देखकर इतना क्रोधित हुआ कि उसका पुरूष एक जंगली भैंसे के रूप में रूपांतरित हो गया और वह देवी दुर्गा की सेना पर टूट पड़ा थे तभी देवी दुर्गा ने उस हिस्से पर एक रस्सी फेंकी लेकिन वह से पकड़ नहीं पाई उस घर से रूपी दानव ने देवी दुर्गा को देखकर क्रोध भरी यह 10 दिनों तक चला जहां महिषासुर हार मानने को तैयार ही नहीं था और वही निरंतर युद्ध करते हुए देवी दुर्गा और क्रोध से भर गई और दसवें दिन देवी दुर्गा ने अपने त्रिशूल से भैंस रूपी दानव महिषासुर का सिर काट दिया उसके पूरे शरीर को जकड़ लिया था इस तरह से दुष्ट भय से रूपी दानव का अत्याचार समाप्त हो गई क्योंकि देवी दुर्गा ने धर्म को बहाल किया जिसे आमतौर पर विजयादशमी या दशहरा के रूप में जाना जाता है यकीनन यह एक आकर्षक कहानी थी आज हम सभी हिंदू धर्म के अनुयाई के रूप में नवरात्रि मनाते हैं और देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं दशहरा हम महिषासुर के साथ युद्ध के बाद दुर्गा को शांत करने के लिए जाप करते हैं क्योंकि इससे मां दुर्गा हमें शक्ति और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं इस दिन को दशहरा भी कहा जाता है जहां हम रावण पर भगवान राम की जीत का जश्न मनाते हैं हम आशा करते हैं कि यह कहानी आपको नवरात्री और विजय दशमी, दशहरा तिथि त्योहारों को समझने में मदद करेगी हमें नीचे कमेंट सेक्शन में बताएं इस कहानी को अपने दोस्तों और परिवारजनों के साथ जरूर साझा करें तब तक हम आपसे भारतीय पौराणिक कथाओं में से एक और दिलचस्प कहानी के साथ मिलते हैं जय माता दी

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