सच्ची कहानियाँ

तिलिस्मी कुएँ का रहस्य

तिलिस्मी कुएँ का रहस्य

गाँव में एक पुराना तिलिस्मी कुआँ था, जिसे लोग पीढ़ियों से डरावना और रहस्यमयी मानते आए थे। हर रात, जब चारों ओर सन्नाटा छा जाता, तो तिलिस्मी कुएँ से अजीब सी आवाज़ें आने लगतीं। लोग कहते थे कि इस तिलिस्मी कुएँ के अंदर बुरी आत्माओं का वास है, और जिसने भी इसके करीब जाने की हिम्मत की, वह कभी लौटकर नहीं आया।

बचपन से ही, राजू ने इस तिलिस्मी कुएँ की कहानियाँ सुनी थीं। गाँव के बुज़ुर्ग अक्सर इस तिलिस्मी कुएँ के रहस्यों की बातें करते, और बच्चे डरकर इस जगह के पास भी नहीं जाते थे। लेकिन राजू का मन हमेशा इस तिलिस्मी कुएँ के रहस्य को जानने के लिए बेचैन रहता। उसने ठान लिया था कि एक दिन वह इस तिलिस्मी कुएँ के रहस्य को जरूर उजागर करेगा।

एक रात, जब चाँदनी में गाँव सो रहा था, राजू ने अपनी हिम्मत जुटाई और तिलिस्मी कुएँ के पास जाने का फैसला किया। उसके हाथों में एक लालटेन थी, जो हल्की-हल्की रोशनी बिखेर रही थी। जैसे-जैसे वह तिलिस्मी कुएँ के करीब पहुँचता गया, उसके दिल की धड़कनें तेज होती गईं। कुएँ के पास पहुँचते ही उसे एक ठंडी हवा का झोंका महसूस हुआ और अचानक से उसके कानों में कुछ फुसफुसाहट सी सुनाई दी। यह तिलिस्मी कुएँ की आवाज थी, जिसे सुनते ही राजू को अपने फैसले पर पछतावा होने लगा।

लेकिन उसका जिज्ञासु मन उसे रुकने नहीं दे रहा था। उसने तिलिस्मी कुएँ के अंदर झाँका और देखा कि नीचे बहुत गहरा अंधेरा था। अचानक उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा हो। वह घबराकर पीछे मुड़ा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। उसने फिर से तिलिस्मी कुएँ के अंदर झाँका और देखा कि कुछ चमकती हुई चीज़ नीचे की ओर दिखाई दे रही थी। राजू का साहस जाग उठा, और उसने कुएँ में उतरने का निश्चय किया।

राजू ने एक लंबी रस्सी को कुएँ के किनारे से बाँधा और धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा। जितना वह नीचे जा रहा था, तिलिस्मी कुएँ का वातावरण उतना ही डरावना होता जा रहा था। अचानक उसने देखा कि कुएँ की दीवारों पर कुछ अजीब चित्र बने हुए हैं। वे चित्र किसी तांत्रिक अनुष्ठान के प्रतीत हो रहे थे। तिलिस्मी कुएँ का यह दृश्य देखकर राजू का मन घबराने लगा, लेकिन उसने खुद को शांत रखा और आगे बढ़ता गया।

नीचे पहुँचने पर उसने देखा कि कुएँ के तल में एक छोटी सी गुफा है। राजू ने उस गुफा में प्रवेश किया। गुफा के अंदर उसे कुछ अजीब सी वस्तुएँ मिलीं – एक पुरानी तलवार, कुछ सिक्के और एक लकड़ी की मूर्ति। इन सब के बीच एक बड़ा सा पत्थर पड़ा था, जिस पर लिखा था: “जिसने भी इस तिलिस्मी कुएँ का रहस्य जानने की कोशिश की, वह हमेशा के लिए इस जगह का हिस्सा बन जाएगा।” राजू को यह पढ़कर डर महसूस हुआ, लेकिन वह पीछे हटने वाला नहीं था।

तभी उसे गुफा के एक कोने से किसी की हँसी सुनाई दी। उसने मुड़कर देखा तो एक बुढ़िया वहाँ खड़ी थी, जिसके बाल बिखरे हुए थे और चेहरा झुर्रियों से भरा था। बुढ़िया ने राजू को चेतावनी दी, “बेटा, यह तिलिस्मी कुआँ हर किसी के लिए नहीं है। जो भी इसके रहस्यों में दखल देता है, वह इसकी कैद से बाहर नहीं निकल सकता।” राजू ने हिम्मत से कहा, “मुझे इसके रहस्य जानने हैं, चाहे जो हो जाए।”

बुढ़िया ने एक गहरी साँस ली और कहा, “अगर तुझे सच में इस तिलिस्मी कुएँ का रहस्य जानना है, तो मुझे वचन दे कि जो भी देखेगा, उसे किसी और से साझा नहीं करेगा।” राजू ने वचन दिया और बुढ़िया ने उसे एक पुरानी पुस्तक दी, जिसमें इस तिलिस्मी कुएँ के बारे में कई रहस्यमयी बातें लिखी थीं।

पुस्तक में लिखा था कि यह तिलिस्मी कुआँ सदियों पहले एक राजा ने बनवाया था, जो अमरता की खोज में लगा हुआ था। उसने इस कुएँ के अंदर कुछ खास रत्नों और मंत्रों का प्रयोग किया था ताकि वह कभी मरे नहीं। लेकिन उसके मंत्रों का असर उल्टा हुआ, और वह आत्मा बनकर इसी कुएँ में कैद हो गया। अब उसकी आत्मा इस कुएँ की रक्षा करती है और किसी को भी इसकी सच्चाई जानने नहीं देती।

राजू ने बुढ़िया से पूछा, “क्या मैं इस तिलिस्मी कुएँ से बाहर निकल सकता हूँ?” बुढ़िया ने कहा, “हाँ, लेकिन इसके लिए तुझे कुछ बलिदान देने होंगे।” राजू ने पूछा, “कैसा बलिदान?” बुढ़िया ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुझे अपनी सबसे कीमती चीज़ छोड़नी होगी।” राजू ने अपनी जेब टटोली और उसने देखा कि वहाँ उसकी माँ का दिया हुआ एक ताबीज था। उसने बेमन से वह ताबीज निकालकर बुढ़िया को दे दिया।

जैसे ही राजू ने ताबीज बुढ़िया को दिया, बुढ़िया की हँसी और तेज हो गई और वह धीरे-धीरे अदृश्य हो गई। राजू को समझ में आ गया कि वह बुढ़िया खुद इस तिलिस्मी कुएँ की आत्मा थी, जो लोगों को अपने जाल में फँसाती थी। अचानक राजू को अपनी माँ की याद आई, और उसने महसूस किया कि उसने अपनी सबसे अनमोल चीज खो दी है।

राजू जैसे-तैसे कुएँ से बाहर निकला और गाँव की ओर भागा। लेकिन गाँव पहुँचने पर उसने देखा कि सब कुछ बदल चुका है। गाँव के लोग उसे नहीं पहचानते थे, और उसे महसूस हुआ कि कई साल बीत चुके हैं। राजू समझ गया कि तिलिस्मी कुएँ में उसका समय ठहर गया था, लेकिन बाहर की दुनिया में समय बहुत आगे बढ़ चुका था।

गाँव में वह तिलिस्मी कुएँ का रहस्य जानने वाला आखिरी व्यक्ति बन चुका था। उसके अनुभवों ने उसे बदल दिया था, और उसने ठान लिया कि वह इस तिलिस्मी कुएँ के रहस्य को किसी और के साथ साझा नहीं करेगा। उसने महसूस किया कि कुछ रहस्य हमेशा रहस्य ही रहने चाहिए, वरना वे जीवन को उलट-पलट कर सकते हैं।

इस प्रकार, राजू ने तिलिस्मी कुएँ का रहस्य तो जान लिया, लेकिन इसकी कीमत उसने अपने जीवन के कई साल देकर चुकाई। वह अब गाँव में एक साधारण व्यक्ति बनकर रहता है, लेकिन उसके मन में हमेशा उस तिलिस्मी कुएँ की गूँज रहती है। लोग आज भी उस कुएँ को तिलिस्मी मानते हैं, और राजू उन्हें कभी इस भ्रम से बाहर नहीं निकालता।

तिलिस्मी कुएँ का रहस्य

#तिलिस्मी कुएँ का रहस्य

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