गर्मी की तपती दुपहरी थी। हवा जैसे ठहर गई थी, और पेड़ों की पत्तियाँ भी मानो थम गई थीं। रेलवे स्टेशन पर लोग इधर-उधर भाग रहे थे, लेकिन सुरेश का मन उस भीड़भाड़ से अलग कहीं और था। सुरेश मुंबई में पिछले दस सालों से मजदूरी कर रहा था। वह अपने गाँव, अपनी मिट्टी, और अपने घर लौटने का सपना हर दिन देखता था। लेकिन आज का दिन खास था। सुरेश ने आखिरकार गाँव लौटने का फैसला कर लिया था।
बचपन की यादें
सुरेश जब छोटा था, तो अपने गाँव की हर गली में भागता फिरता था। खेतों में पिता के साथ काम करना, आम के बगीचे से कच्चे आम तोड़ना, और माँ के हाथ की बनी मक्के की रोटी खाना, यह सब उसकी यादों में ताजा था। लेकिन गरीबी ने उसे मजबूर किया कि वह गाँव छोड़कर शहर में काम ढूंढे।
शहर की कठिनाइयाँ
मुंबई ने सुरेश को बहुत कुछ सिखाया था, लेकिन यह सिखाई हुई बातें अक्सर कड़वी थीं। दिनभर की कड़ी मेहनत और रात को छोटी सी झुग्गी में सोने का संघर्ष उसकी रोजमर्रा की जिंदगी बन गया था। वहाँ कोई अपना नहीं था, सिर्फ सपनों का पीछा करते लोग। लेकिन इन सबके बीच, सुरेश ने हमेशा अपने गाँव की मिट्टी की खुशबू को महसूस किया।
फैसला
एक दिन, सुरेश ने अपने मालिक से कहा, “मैं अब और नहीं कर सकता। मैं अपने गाँव लौटना चाहता हूँ।” मालिक ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन सुरेश का मन अब पूरी तरह बन चुका था। उसने अपनी सारी जमा पूंजी समेटी, और गाँव लौटने का टिकट कटवा लिया।
यात्रा की शुरुआत
सुरेश ने जैसे ही ट्रेन में कदम रखा, उसकी आँखों में आँसू थे। यह आँसू खुशी के थे, घर लौटने की खुशी के। ट्रेन की खिड़की से बाहर देखता हुआ वह अपने बचपन के दिनों को याद करता रहा। वह सोच रहा था कि गाँव पहुँचकर सबसे पहले वह अपने माता-पिता के पैर छुएगा और फिर अपने दोस्तों से मिलेगा।
गाँव की पहली झलक
ट्रेन जब स्टेशन पर रुकी, तो सुरेश का दिल जोरों से धड़कने लगा। उसने अपनी छोटी सी गठरी उठाई और स्टेशन से बाहर निकला। जैसे ही उसने गाँव की मिट्टी पर कदम रखा, उसे ऐसा लगा जैसे उसने अपनी सारी परेशानियाँ पीछे छोड़ दी हों। गाँव की हवाओं में एक अलग सी सुकून था।
परिवार से मिलन
सुरेश जैसे ही अपने घर पहुँचा, उसकी माँ ने उसे देखते ही गले से लगा लिया। माँ के आँसुओं ने सुरेश के दिल को भर दिया। पिता भी अपनी भावनाएँ छिपा नहीं पाए और बेटे को देख उनकी आँखों में खुशी झलक आई। छोटे भाई-बहन दौड़कर सुरेश के पास आए, और पूरे घर में एक अलग ही माहौल बन गया।
गाँव का बदलता रूप
गाँव अब पहले जैसा नहीं रहा था। नई सड़कें बन चुकी थीं, और गाँव में बिजली भी आ गई थी। सुरेश ने देखा कि कई पुरानी जगहें बदल चुकी थीं, लेकिन वह बदलाव सकारात्मक था। उसने अपने दोस्तों से मुलाकात की और उनके साथ पुरानी यादें ताजा कीं।
नई शुरुआत
सुरेश ने ठान लिया था कि वह अब गाँव में ही कुछ करेगा। उसने अपनी बचत का उपयोग करके एक छोटा सा दुकान खोलने का सोचा। गाँव में सभी ने उसका समर्थन किया। कुछ ही महीनों में, सुरेश की दुकान चलने लगी और वह अपनी जिंदगी को एक नई दिशा देने में कामयाब हुआ।
सपना सच हुआ
सुरेश के लिए गाँव लौटना सिर्फ एक सपना नहीं था, बल्कि उसका सबसे बड़ा उद्देश्य बन गया था। उसने महसूस किया कि खुशी हमेशा बड़े शहरों में नहीं होती, बल्कि अपने अपनों के साथ रहने में होती है।
अंतिम संदेश
सुरेश की कहानी हमें सिखाती है कि कभी-कभी, घर वापसी ही सबसे बड़ी जीत होती है। जिंदगी चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, अपने परिवार और अपनी मिट्टी के पास लौटने का सुख अनमोल होता है।
इस तरह सुरेश का “घर वापसी का सपना” सच हुआ, और वह खुशी-खुशी अपने गाँव में बस गया।