कठिनाइयों का साहसिक सफर
किसी छोटे से गाँव में रहने वाला 15 वर्षीय अंशुल एक सामान्य किसान परिवार का लड़का था। उसका सपना था कि वह इंजीनियर बने और अपने परिवार को गरीबी से बाहर निकाले। लेकिन गाँव में न संसाधन थे, न अवसर। उसके माता-पिता दिन-रात खेतों में मेहनत करते, फिर भी मुश्किल से दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो पाता।
अंशुल अपने स्कूल का सबसे होशियार छात्र था। उसे गणित और विज्ञान में गहरी रुचि थी। हर कोई उसकी तारीफ करता, लेकिन जब उसके पिता ने उसे पढ़ाई छोड़कर खेतों में काम करने को कहा, तो उसकी दुनिया जैसे टूट गई। बाढ़ ने उनके खेतों को बर्बाद कर दिया था, और परिवार पर कर्ज का पहाड़ खड़ा हो गया था।
अंशुल ने अपने माता-पिता से वादा किया, “मैं पढ़ाई के साथ-साथ आपकी मदद भी करूंगा।” उसने गाँव के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। दिन में स्कूल और काम, और रात में पढ़ाई—यह उसकी नई दिनचर्या बन गई। हालाँकि, कुछ लोग उसके इस प्रयास का मजाक उड़ाते, लेकिन अंशुल ने परवाह नहीं की।
एक दिन स्कूल में विज्ञान मेले की घोषणा हुई। हर छात्र को अपना प्रोजेक्ट प्रस्तुत करना था। अंशुल ने “सौर ऊर्जा से चलने वाला सिंचाई पंप” बनाने का विचार किया। लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे। उसने घर के पुराने सामान, लकड़ी और लोहे के टुकड़े जुटाए। अपने प्रोजेक्ट पर काम करते हुए उसने कई रातें जागकर बिताईं।
मेले के दिन अंशुल का प्रोजेक्ट सबका ध्यान आकर्षित कर रहा था। शहर से आए प्रोफेसर ने उसकी मेहनत को सराहा और उसे स्कॉलरशिप पर अपने कॉलेज में पढ़ने का प्रस्ताव दिया। यह सुनकर अंशुल की आँखों में खुशी के आँसू आ गए।
कॉलेज में दाखिला पाना उसके जीवन का सबसे बड़ा अवसर था, लेकिन यहाँ की दुनिया गाँव से बहुत अलग थी। बड़े शहर में रहने का खर्च, कक्षाओं का दबाव और प्रतियोगिता ने अंशुल के हौसले को बार-बार आजमाया। उसने पार्ट-टाइम जॉब करनी शुरू की। कई बार उसे भूखे पेट सोना पड़ा, लेकिन उसने हार नहीं मानी।
कॉलेज में एक बार एक राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता हुई, जिसमें छात्रों को अपनी परियोजनाओं को प्रस्तुत करना था। अंशुल ने अपने सिंचाई पंप को और उन्नत बनाकर पेश किया। उसकी परियोजना ने पहला स्थान प्राप्त किया। इस जीत ने उसे न केवल सम्मान दिलाया, बल्कि उसे एक बड़ी कंपनी में इंटर्नशिप का अवसर भी मिला।
इंटर्नशिप के दौरान अंशुल ने बहुत कुछ सीखा। उसकी मेहनत और लगन को देखकर कंपनी ने उसे नौकरी की पेशकश की। लेकिन अंशुल ने उस नौकरी को ठुकरा दिया। उसने कहा, “मुझे अपने गाँव वापस जाना है और वहाँ के लोगों के लिए कुछ करना है।”
गाँव लौटकर अंशुल ने अपने ज्ञान का इस्तेमाल करते हुए कई परियोजनाएँ शुरू कीं। उसने सौर ऊर्जा के उपयोग से गाँव की बिजली और पानी की समस्या को हल किया। इसके अलावा, उसने एक कोचिंग सेंटर खोला, जहाँ वह बच्चों को पढ़ाता और प्रेरित करता।
कुछ सालों बाद, अंशुल ने गाँव में एक टेक्नोलॉजी सेंटर स्थापित किया, जहाँ युवा पीढ़ी को नई तकनीकों की शिक्षा दी जाती थी। उसकी मेहनत ने पूरे गाँव को बदल दिया। किसान अब खुशहाल थे, बच्चे बेहतर शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, और गाँव का विकास तेजी से हो रहा था।
एक दिन, अंशुल को राज्य स्तर पर “युवा नवोन्मेषक” पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुरस्कार समारोह में उसने कहा, “कठिनाइयाँ हमें रोकने नहीं, बल्कि हमें मजबूत बनाने के लिए आती हैं। अगर हम हार मान लें, तो सपने अधूरे रह जाते हैं। लेकिन अगर हम डटकर सामना करें, तो सफलता हमारी होती है।”
उसकी इस बात ने हर किसी को प्रेरित किया। अंशुल की कहानी पूरे राज्य में मिसाल बन गई। आज वह न केवल अपने गाँव, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी प्रेरणा का स्रोत है।