सांझपुर गाँव में आरव और कियारा बचपन के सबसे अच्छे दोस्त थे। उनकी पहली मुलाकात गाँव की नदी किनारे हुई थी, जब कियारा अपनी रंगीन पेंसिलों से एक सुंदर चित्र बना रही थी और आरव ने उसे एक किताब के साथ घेर लिया। आरव ने कहा, “तुम्हें पता है? इस नदी की गहराई को नापा जा सकता है।” कियारा मुस्कुराई और बोली, “गहराई नापने से ज्यादा सुंदर है इसे महसूस करना।”
यहीं से उनकी दोस्ती शुरू हुई। आरव, जो हमेशा विज्ञान और तर्क में डूबा रहता था, कियारा के साथ रहते हुए भावनाओं और कल्पनाओं की दुनिया में झाँकने लगा। दूसरी ओर, कियारा ने आरव से सीखा कि हर कल्पना का एक वैज्ञानिक आधार हो सकता है।
गाँव की यादगार शामें
गाँव की हर शाम उनकी दोस्ती का साक्षी बनती। कभी वे नदी किनारे बैठकर सितारों की गिनती करते, तो कभी पेड़ों की छांव में बैठकर सपनों की बातें करते। कियारा कहती, “एक दिन मैं अपने रंगों से पूरी दुनिया को खुशियाँ दूँगी।” आरव जवाब देता, “और मैं दुनिया को ऐसी मशीनें बनाकर दूँगा, जो हर इंसान की ज़िंदगी आसान कर दे।”
गाँव के बुजुर्ग अक्सर कहते, “इनकी दोस्ती वक्त के हर इम्तिहान को पार करेगी।”
जुदाई का पल
समय अपनी रफ्तार से चलता रहा। एक दिन आरव के पिता ने शहर जाने का फैसला किया। विदाई का दिन बेहद भावुक था। कियारा ने आरव को अपनी सबसे खास पेंटिंग दी, जिसमें एक विशाल पेड़ के नीचे दो पक्षी बैठे थे। उसने कहा, “यह पेड़ हमारी दोस्ती का प्रतीक है। चाहे कितनी भी आंधी आए, यह पेड़ कभी नहीं टूटेगा।”
आरव ने वादा किया कि वह उसे नियमित पत्र लिखेगा, लेकिन समय के साथ पत्रों की संख्या घटने लगी। शहर के जीवन में आरव इतना व्यस्त हो गया कि दोस्ती की मधुर स्मृतियाँ कहीं गहरी परछाई में छुप गईं।
दो अलग-अलग सफर
आरव ने शहर में विज्ञान में खुद को झोंक दिया। उसने नई-नई तकनीकें और खोजें कीं, जिनसे उसका नाम बड़े-बड़े मंचों पर गूंजने लगा। दूसरी ओर, कियारा ने अपनी पेंटिंग्स के ज़रिए कला की दुनिया में अपना नाम बनाया। लेकिन दोनों के दिलों में कहीं न कहीं एक खालीपन था।
कियारा हर नई पेंटिंग बनाते वक्त अपने बचपन के दोस्त की बातों को याद करती। वह सोचती, “क्या आरव अब भी मेरे सपनों को याद करता होगा?”
फिर मिलना
सालों बाद, एक दिन आरव ने अखबार में कियारा के नाम की एक हेडलाइन देखी: “अनंत की डोर: कला और कल्पना का अद्भुत संगम”। यह कियारा की पेंटिंग प्रदर्शनी का नाम था। आरव को महसूस हुआ कि उसने अपने सबसे खास दोस्त से कितना लंबा फासला बना लिया था।
प्रदर्शनी में पहुँचते ही उसकी नजर उस पेंटिंग पर गई, जिसमें दो पक्षी उसी पेड़ के नीचे बैठे थे, जो कभी कियारा ने उसे गिफ्ट किया था। उसके पैरों के नीचे जमीन खिसक गई। उसी पल कियारा ने उसे देखा। दोनों की आंखें नम हो गईं।
दोस्ती का नया अध्याय
कियारा ने कहा, “तुमने मेरे लिए वादा तो किया था, लेकिन क्या कभी उसे निभाने की कोशिश की?” आरव ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं हर पल निभा रहा था, सिर्फ ये समझने में देर कर दी कि दोस्ती के लिए वक्त निकालना भी जरूरी है।”
दोनों ने फैसला किया कि अब से वे अपने सपनों को साथ मिलकर पूरा करेंगे। कियारा की कला और आरव का विज्ञान अब साथ-साथ काम करने लगे। उन्होंने गाँव में एक संस्था शुरू की, जहाँ बच्चे कला और विज्ञान को एक साथ सीखते।
एक प्रेरणा बनी दोस्ती
उनकी यह पहल इतनी लोकप्रिय हुई कि दुनिया भर के लोग इसे देखने आए। वे दोनों न केवल एक-दूसरे के सपनों को पंख दे रहे थे, बल्कि हर इंसान को यह सिखा रहे थे कि सच्ची दोस्ती समय और परिस्थितियों की गुलाम नहीं होती।
समाप्ति: अनंत की यात्रा
आरव और कियारा की कहानी अनगिनत लोगों के लिए प्रेरणा बनी। लोग आज भी उन्हें “अनंत की डोर” कहकर पुकारते हैं। उनकी दोस्ती ने यह सिखाया कि जब रिश्ते दिल से जुड़े होते हैं, तो वे हर बाधा को पार कर सकते हैं।