गाँव के एक छोटे से घर में रमेश अपने माता-पिता के साथ रहता था। उसका परिवार बहुत गरीब था, लेकिन उसके माता-पिता ने उसे हमेशा सच्चाई और ईमानदारी का महत्व सिखाया था। वे कहते थे, **”ईमानदारी सबसे बड़ी पूँजी होती है, और सच्चाई का साथ देने वाला व्यक्ति जीवन में कभी हारता नहीं।”** रमेश पढ़ाई में अच्छा था और स्कूल के बाद खेतों में काम करके अपने माता-पिता की मदद करता था। उसके पास महंगे कपड़े या किताबें नहीं थीं, लेकिन उसके मन में सच्चाई और ईमानदारी की कोई कमी नहीं थी।
### **खेत में मिला बटुआ**
एक दिन, जब रमेश खेत में काम कर रहा था, उसे एक चमचमाता हुआ बटुआ पड़ा मिला। पहले तो उसने सोचा कि यह किसी मजदूर का होगा, लेकिन जब उसने उसे खोला, तो उसकी आँखें हैरान रह गईं। बटुए में बहुत सारे पैसे थे और कुछ ज़रूरी कागजात भी थे।
रमेश के मन में कई विचार आए। अगर वह यह पैसे रख लेता, तो उसके घर की सारी परेशानियाँ दूर हो सकती थीं। उसकी माँ को दूसरों के घरों में काम नहीं करना पड़ता, और उसके पिता को मजदूरी के लिए दूर नहीं जाना पड़ता। वह अपनी पढ़ाई के लिए भी किताबें खरीद सकता था। लेकिन अगले ही पल उसे अपनी माँ की सीख याद आई— **”ईमानदारी सबसे बड़ा धन है।”**
रमेश ने तय किया कि वह इस बटुए को उसके असली मालिक तक पहुँचाएगा। उसने गाँव के कुछ बुजुर्गों से पूछा, लेकिन किसी को भी इसका मालिक नहीं पता था। फिर उसने सोचा कि मुखिया जी को इस बारे में बताना चाहिए, क्योंकि वे गाँव के सबसे सम्मानित व्यक्ति थे और हर किसी को जानते थे।
### **बटुए का असली मालिक**
रमेश सीधा गाँव के मुखिया जी के घर पहुँचा और उन्हें पूरी घटना बताई। मुखिया जी ने जब बटुआ खोला, तो उनकी आँखों में चमक आ गई। यह उनका ही बटुआ था, जो सुबह खेत के पास से गुजरते समय गिर गया था। उसमें कुछ ज़रूरी कागजात और पैसे थे, जिनकी उन्हें बहुत ज़रूरत थी।
मुखिया जी ने रमेश की पीठ थपथपाई और बोले, **”बेटा, आजकल के ज़माने में इतने पैसे मिलने के बाद भी कोई उन्हें लौटाने की सोचता नहीं है। तुमने सच में बहुत ईमानदारी दिखाई है।”**
गाँव के लोग भी वहाँ इकट्ठा हो गए और रमेश की ईमानदारी की सराहना करने लगे। सभी उसकी प्रशंसा कर रहे थे और कह रहे थे कि यह लड़का सच्चे संस्कारों वाला है।
### **रमेश का इनाम**
मुखिया जी रमेश की ईमानदारी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे सौ रुपये इनाम में देने की कोशिश की। लेकिन रमेश ने विनम्रता से मना कर दिया और कहा, **”मुझे धन नहीं चाहिए, मुझे बस खुशी है कि बटुआ अपने असली मालिक तक पहुँच गया।”**
मुखिया जी यह सुनकर और भी प्रभावित हुए। उन्होंने कहा, **”बेटा, मैं तुम्हारी ईमानदारी से बहुत खुश हूँ। मैं वादा करता हूँ कि तुम्हारी पढ़ाई का पूरा खर्च मैं उठाऊँगा। तुम्हें अब पैसों की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।”**
रमेश की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। वह बहुत खुश था कि उसकी ईमानदारी के कारण अब वह बिना किसी रुकावट के अपनी पढ़ाई पूरी कर सकेगा। उसके माता-पिता को जब यह खबर मिली, तो वे भी बहुत खुश हुए और गर्व महसूस करने लगे।
### **गाँववालों की प्रेरणा**
इस घटना के बाद पूरे गाँव में रमेश की ईमानदारी की चर्चा होने लगी। लोग अपने बच्चों को रमेश की तरह बनने की सीख देने लगे। गाँव के बुजुर्गों ने कहा, **”ईमानदारी का फल देर से सही, लेकिन हमेशा मीठा होता है।”**
अब रमेश गाँव में और भी सम्मानित हो गया। जहाँ भी जाता, लोग उसकी तारीफ करते। बच्चे भी उसे अपना आदर्श मानने लगे। कुछ समय बाद, रमेश ने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक अच्छी नौकरी प्राप्त की। उसने अपने माता-पिता के लिए एक अच्छा घर बनाया और उनकी सभी परेशानियाँ दूर कर दीं।
### **शिक्षा**
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्चाई और ईमानदारी सबसे बड़ा गुण है। जब हम सच्चाई के रास्ते पर चलते हैं, तो सफलता और सम्मान अपने आप हमारी ओर आते हैं। **ईमानदारी का इनाम देर से सही, लेकिन हमेशा मिलता है।**