ज़िन्दगी हमेशा शोर में नहीं जागती, कई बार यह चुपके से हमारे कानों में फुसफुसाती है, लेकिन हम या तो उसे अनसुना कर देते हैं या फिर समझ नहीं पाते। यह कहानी है आरव की, एक साधारण-से लड़के की, जिसके अंदर एक अलग दुनिया बसती थी, लेकिन वह दुनिया तब तक सबके सामने नहीं आई जब तक कि उसने अपनी ही ज़िन्दगी की आवाज़ को नहीं सुना।
पहला भाग – आरव का बचपन
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में रहने वाला आरव अपने पिता की तरह एक सरकारी नौकरी नहीं चाहता था। वह कुछ अलग करना चाहता था, लेकिन क्या, यह उसे खुद भी नहीं पता था। उसकी दुनिया बहुत छोटी थी—स्कूल, घर और अपने सबसे अच्छे दोस्त अभिषेक के साथ बीते हुए पल।
आरव के पिता, रमेश बाबू, एक सरकारी क्लर्क थे, जो हमेशा यही कहते, “ज़िन्दगी में वही करो जो सुरक्षित हो।” उनकी यह सोच आरव को हमेशा अंदर ही अंदर परेशान करती। वह सोचता, “अगर हर कोई सुरक्षित रास्ता ही चुनेगा, तो नया रास्ता कौन बनाएगा?”
घर में अक्सर पैसों की तंगी रहती थी। माँ घर का सारा काम संभालतीं और चाहतीं कि उनका बेटा बड़े होकर एक अच्छा इंसान बने। लेकिन ‘अच्छे इंसान’ की परिभाषा सबके लिए अलग थी।
दूसरा भाग – आवाज़ की पहली झलक
एक दिन, स्कूल में नए टीचर विनय सर आए। उन्होंने एक ऐसी बात कही, जिसने आरव की सोच ही बदल दी।
“हर इंसान की अपनी आवाज़ होती है, लेकिन जब तक वह खुद उसे नहीं सुनेगा, दुनिया भी उसे नहीं सुन पाएगी।”
आरव के लिए यह शब्द सिर्फ एक सीख नहीं, बल्कि एक सवाल थे। उसकी आवाज़ क्या थी? उसे क्या करना था?
वह हमेशा अपनी डायरी में कुछ न कुछ लिखता रहता था—कहानियाँ, कविताएँ, ख्याल। लेकिन वह कभी अपनी रचनाएँ किसी को दिखाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
अभिषेक ने एक दिन उसकी डायरी देख ली और कहा, “तू कमाल का लिखता है! कभी इसे बाहर क्यों नहीं लाया?”
आरव हँस दिया, लेकिन कहीं न कहीं उसके अंदर एक हलचल शुरू हो चुकी थी।
तीसरा भाग – पहला कदम
कस्बे में एक साहित्य प्रतियोगिता होने वाली थी। अभिषेक ने ज़ोर देकर कहा, “इस बार तुझे ज़रूर हिस्सा लेना चाहिए।”
आरव को डर था। अगर उसकी कहानी किसी को पसंद नहीं आई तो? क्या होगा अगर लोग हँसने लगें?
लेकिन विनय सर ने उसे हौसला दिया, “जो डर गया, वह कभी जीत नहीं सकता।”
काफी हिम्मत जुटाकर, उसने अपनी कहानी प्रतियोगिता में भेज दी।
चौथा भाग – पहली जीत और आत्मविश्वास
एक हफ्ते बाद जब प्रतियोगिता के नतीजे आए, तो आरव का नाम विजेताओं की सूची में था। यह उसकी ज़िन्दगी की पहली जीत थी।
अब वह पहले से ज़्यादा लिखने लगा। उसने इंटरनेट पर अपने लेख डालने शुरू कर दिए। धीरे-धीरे लोग उसकी कहानियाँ पसंद करने लगे।
एक दिन, उसे एक बड़े प्रकाशक का ईमेल आया। उन्होंने उसकी कहानियों को किताब की शक्ल देने की पेशकश की।
यह सुनकर पिता ने कहा, “यह सब कितने दिनों तक चलेगा? कोई स्थायी नौकरी कर ले।”
लेकिन माँ ने पहली बार उसका साथ दिया, “अगर यह उसकी आवाज़ है, तो इसे दबाओ मत।”
पाँचवां भाग – सफलता की नई राह
आरव ने अपनी पहली किताब छपवाई और वह बेहतरीन तरीके से बिकने लगी। वह अब एक लेखक बन चुका था। उसने साबित कर दिया कि सपनों की भी आवाज़ होती है, बस उन्हें सुनने की ज़रूरत होती है।
अब जब वह अपने पुराने घर की बालकनी में बैठा था, तो उसे महसूस हुआ कि उसकी ज़िन्दगी की आवाज़ बहुत पहले ही उठ चुकी थी, बस उसे सुनने में वक्त लग गया।
“हर किसी की ज़िन्दगी में एक आवाज़ होती है, बस उसे सुनने की देरी होती है।”