बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव में रामलाल नाम का एक किसान रहता था। वह बहुत ईमानदार और मेहनती था। उसकी एक ही संतान थी—राजू। रामलाल अपने बेटे से बहुत प्यार करता था और चाहता था कि वह एक अच्छा इंसान बने। लेकिन उसे चिंता थी कि राजू में अच्छे संस्कार नहीं थे।
राजू आलसी था, बड़ों का सम्मान नहीं करता था और हमेशा झूठ बोलता था। वह अपने दोस्तों के साथ मस्ती में रहता और पढ़ाई पर ध्यान नहीं देता था।
राजू की बुरी आदतें
राजू जब भी किसी काम के लिए भेजा जाता, तो वह बहाने बना देता। अगर कोई बुजुर्ग उसे कुछ करने को कहता, तो वह अनसुना कर देता। जब उसकी माँ उसे कोई काम करने को कहती, तो वह गुस्सा होकर कहता, “माँ, मैं क्यों करूँ? यह मेरा काम नहीं है!”
रामलाल ने कई बार उसे समझाने की कोशिश की, “बेटा, अच्छे संस्कार ही इंसान की असली पहचान होते हैं। अगर तुम्हारे अंदर अच्छे संस्कार नहीं होंगे, तो लोग तुम्हारा सम्मान नहीं करेंगे।”
लेकिन राजू ने हमेशा उनकी बात को मजाक में लिया और कहता, “पिताजी, इस दुनिया में पैसे और चालाकी की ज़रूरत होती है, संस्कारों की नहीं!”
रामलाल को यह सुनकर बहुत दुख हुआ।
संस्कारों की सीख
एक दिन रामलाल ने एक उपाय सोचा। वह राजू को आम के बगीचे में ले गया और कहा, “बेटा, देखो ये छोटे-छोटे पौधे! अगर हम इन्हें अभी सही तरीके से सींचें और देखभाल करें, तो ये बड़े और फलदार वृक्ष बनेंगे। लेकिन अगर इन्हें अभी नुकसान पहुँचाया जाए, तो ये कभी बड़े नहीं होंगे।”
राजू ने जवाब दिया, “पिताजी, मैं समझा नहीं!”
रामलाल ने मुस्कुराते हुए कहा, “बिल्कुल वैसे ही जैसे अच्छे संस्कार छोटे बच्चों में बचपन से ही डाले जाते हैं। अगर कोई बचपन में अच्छे संस्कार सीख ले, तो वह बड़ा होकर एक अच्छा इंसान बनता है। लेकिन अगर वह गलत रास्ते पर चला जाए, तो उसका जीवन बर्बाद हो सकता है।”
राजू को यह बातें बोरिंग लगीं और वह वहाँ से चला गया।
राजू का अहंकार
राजू को यह सब बेकार की बातें लगीं। उसने सोचा, “मेरे पिताजी बेवजह चिंता करते हैं। दुनिया में सिर्फ होशियारी और पैसा चलता है, संस्कारों का कोई महत्व नहीं है।”
लेकिन जल्द ही उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।
एक घटना से बदला राजू
कुछ महीनों बाद गाँव में एक बड़ा मेला लगा। राजू भी वहाँ गया। वहाँ बहुत भीड़ थी और हर कोई मस्ती कर रहा था। राजू भी अपने दोस्तों के साथ घूम रहा था कि तभी उसकी जेब से उसका पर्स चोरी हो गया।
अब उसके पास घर लौटने के लिए पैसे नहीं थे। वह बहुत परेशान हुआ और इधर-उधर मदद माँगने लगा, लेकिन कोई उसकी मदद के लिए तैयार नहीं था।
तभी उसने देखा कि एक बूढ़ा व्यक्ति पास ही बैठा था। राजू ने उससे मदद माँगी, लेकिन बूढ़े व्यक्ति ने कहा, “बेटा, मैं तुम्हारी मदद ज़रूर करता, लेकिन मैंने तुम्हें कई बार लोगों से झूठ बोलते और उन्हें धोखा देते देखा है। मुझे कैसे यकीन हो कि तुम अब सच बोल रहे हो?”
राजू को यह सुनकर बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। उसे पहली बार एहसास हुआ कि यदि उसने अच्छे संस्कार अपनाए होते, तो आज लोग उसकी मदद के लिए आगे आते।
संस्कारों का महत्व समझ आया
राजू जैसे-तैसे घर पहुँचा और अपने पिता से सारी घटना बताई। उसने कहा, “पिताजी, आज मुझे समझ आ गया कि दुनिया में अच्छे संस्कार ही सबसे बड़ी पूंजी होते हैं। अगर मेरे अंदर अच्छे संस्कार होते, तो लोग मुझ पर विश्वास करते और मेरी मदद करने को तैयार होते।”
रामलाल ने मुस्कुराकर कहा, “बेटा, देर आए, दुरुस्त आए! अब से तुम अपने जीवन में अच्छे संस्कार अपनाने की कोशिश करो।”
उस दिन के बाद से राजू पूरी तरह बदल गया। वह ईमानदारी, सच्चाई और मेहनत का महत्व समझने लगा।
संस्कारों की परीक्षा
राजू अब पूरी तरह बदल चुका था। वह अब अपने माता-पिता की सेवा करता, बड़ों का सम्मान करता और ईमानदारी से काम करता।
एक दिन गाँव में एक व्यापारी आया, जो गरीब लोगों को सस्ते दामों पर चीजें बेचता था। लेकिन वह लोगों को परखना चाहता था कि कौन सच में अच्छा इंसान है।
राजू ने व्यापारी की मदद की और उसके लिए पानी लाया। व्यापारी ने कहा, “बेटा, तुम बहुत अच्छे इंसान लगते हो। तुम्हें इस गाँव में बहुत मान-सम्मान मिलता होगा!”
राजू ने सिर झुका लिया और कहा, “पहले मैं ऐसा नहीं था। लेकिन मेरे पिता ने मुझे अच्छे संस्कारों का महत्व सिखाया। अब मैं समझ गया हूँ कि पैसे से ज्यादा संस्कार की कीमत होती है।”
व्यापारी बहुत खुश हुआ और उसने राजू को आशीर्वाद दिया।
शिक्षा:
अच्छे संस्कार इंसान की सबसे बड़ी पूंजी होते हैं। धन और चतुराई क्षणिक हो सकते हैं, लेकिन संस्कार जीवन भर काम आते हैं। इसलिए, हमें अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना बहुत ज़रूरी है।