बहुत समय पहले की बात है। एक छोटे से गाँव में मोहन नाम का एक लड़का रहता था। वह बहुत चंचल और जिज्ञासु था। उसे हर चीज़ के बारे में जानने की उत्सुकता रहती थी। लेकिन एक समस्या थी—उसे अच्छे और बुरे में फर्क समझ में नहीं आता था।
मोहन के माता-पिता बहुत सरल और ईमानदार लोग थे। वे हमेशा उसे सही रास्ता दिखाने की कोशिश करते, लेकिन वह उनकी बातों को हल्के में लेता।
बचपन की सीख
एक दिन मोहन के पिता रघुवीर उसे पास बिठाकर समझाने लगे, “बेटा, दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं—अच्छे और बुरे। अच्छे लोग सत्य, ईमानदारी और परोपकार की राह पर चलते हैं, जबकि बुरे लोग झूठ, धोखा और लालच में डूबे रहते हैं। हमें हमेशा अच्छे रास्ते पर चलना चाहिए।”
मोहन ने हँसते हुए कहा, “पिताजी, अगर बुरे लोगों का रास्ता इतना गलत होता है, तो वे अमीर और ताकतवर कैसे बन जाते हैं?”
रघुवीर मुस्कुराए और बोले, “बेटा, उनकी चमक केवल कुछ समय के लिए होती है। लेकिन अंत में जीत हमेशा अच्छाई की ही होती है।”
मोहन को यह सब बातें समझ नहीं आईं, लेकिन जल्द ही उसे इसका सबूत मिल गया।
बुराई का रास्ता
गाँव में शंभू नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह बहुत चालाक था और अपने स्वार्थ के लिए किसी को भी धोखा दे सकता था। वह अक्सर बच्चों को बहकाता और उन्हें गलत राह पर चलाने की कोशिश करता।
एक दिन शंभू ने मोहन को बुलाया और कहा, “बेटा, ईमानदारी और अच्छाई से कोई अमीर नहीं बनता। अगर तुम्हें जल्दी सफल होना है, तो मेरा तरीका अपनाओ।”
मोहन उत्सुकता से बोला, “कैसा तरीका?”
शंभू ने उसे चोरी करना, झूठ बोलना और दूसरों को धोखा देना सिखाया। मोहन को यह सब बहुत रोमांचक लगा। उसने धीरे-धीरे वही करना शुरू कर दिया।
बुरे काम का नतीजा
एक दिन मोहन ने अपने मित्र रामू की किताब चुरा ली और झूठ बोलकर कहा कि उसने नहीं ली। लेकिन जब सच्चाई सामने आई, तो सभी दोस्तों ने उससे दोस्ती तोड़ ली। गाँव के लोग भी उससे दूरी बनाने लगे।
जब मोहन अपने घर पहुँचा, तो उसके पिता ने गंभीर स्वर में कहा, “बेटा, यह तुम्हारे लिए आखिरी चेतावनी है। अगर तुमने बुरे रास्ते को नहीं छोड़ा, तो तुम्हारा भविष्य अंधकारमय हो जाएगा।”
लेकिन मोहन ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया।
सबक सिखाने की योजना
रघुवीर को एहसास हो गया कि मोहन को सिखाने के लिए उसे एक ठोस सबक देना पड़ेगा। उन्होंने एक तरकीब सोची।
उन्होंने मोहन को एक कच्चे और पके आम दिखाए और पूछा, “बेटा, इनमें से कौन-सा आम अच्छा है?”
मोहन ने तुरंत पका आम उठा लिया और बोला, “यह मीठा और अच्छा होगा।”
तब रघुवीर ने कहा, “अब इसे चखकर देखो।”
मोहन ने जैसे ही आम का पहला टुकड़ा मुँह में डाला, वह कड़वा निकला।
रघुवीर ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटा, यह वही बुराई है जो बाहर से आकर्षक लगती है, लेकिन अंदर से खोखली होती है।”
मोहन को अब अच्छे और बुरे का असली फर्क समझ में आने लगा।
बदलाव की शुरुआत
इसके बाद मोहन ने अपनी गलतियों को सुधारने का फैसला किया। वह दोबारा अच्छे रास्ते पर चलने लगा। उसने अपने दोस्तों से माफी माँगी और गाँव वालों का विश्वास जीतने के लिए अच्छा व्यवहार करने लगा।
धीरे-धीरे लोग उसे फिर से पसंद करने लगे। मोहन ने समझ लिया कि अच्छाई भले ही धीरे आगे बढ़े, लेकिन अंत में उसकी जीत होती है।
संस्कारों की परीक्षा
मोहन के व्यवहार में परिवर्तन देख सभी लोग हैरान थे। लेकिन उसकी परीक्षा अभी बाकी थी।
एक दिन गाँव में एक व्यापारी आया, जो गरीब लोगों को सस्ते दामों पर चीजें बेचता था। लेकिन वह लोगों को परखना चाहता था कि कौन सच में अच्छा इंसान है।
मोहन ने व्यापारी की मदद की और उसके लिए पानी लाया। व्यापारी ने कहा, “बेटा, तुम बहुत अच्छे इंसान लगते हो। तुम्हें इस गाँव में बहुत मान-सम्मान मिलता होगा!”
मोहन ने सिर झुका लिया और कहा, “पहले मैं ऐसा नहीं था। लेकिन मेरे पिता ने मुझे अच्छे संस्कारों का महत्व सिखाया। अब मैं समझ गया हूँ कि पैसे से ज्यादा संस्कार की कीमत होती है।”
व्यापारी बहुत खुश हुआ और उसने मोहन को आशीर्वाद दिया।
एक और सीख
कुछ समय बाद गाँव में एक नई दुकान खुली। दुकानदार ने गाँव वालों को महंगे दामों पर सामान बेचना शुरू कर दिया। मोहन को यह देखकर दुख हुआ। उसने सोचा कि अगर लोग मिलकर उसका सामना करें, तो वे अपनी सही कीमत पर सामान ले सकते हैं।
मोहन ने गाँव के बुजुर्गों को समझाया कि अगर वे दुकानदार से बातचीत करें और सही मूल्य की माँग करें, तो वह दाम कम कर सकता है। शुरुआत में गाँव वाले झिझके, लेकिन जब उन्होंने मोहन का आत्मविश्वास देखा, तो वे भी तैयार हो गए।
अंततः दुकानदार को दाम कम करने पड़े और सभी को न्याय मिला। इस घटना से गाँव वालों को मोहन पर गर्व हुआ और उन्होंने महसूस किया कि अच्छे संस्कार और सही रास्ता अपनाने से ही दुनिया में बदलाव लाया जा सकता है।
शिक्षा:
बुराई का आकर्षण तात्कालिक होता है, लेकिन उसका अंजाम बुरा होता है।
अच्छे और बुरे में फर्क समझना ज़रूरी है, क्योंकि इससे हमारा भविष्य तय होता है।
अच्छाई का रास्ता कठिन हो सकता है, लेकिन वह हमेशा सही होता है।
संस्कार और नैतिकता ही इंसान को सच्चा सम्मान दिलाते हैं।