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सविता ,रोहित और पूजा तिनके का सहारा एक कहानी

सविता

सविता ,रोहित और पूजा तिनके का सहारा एक कहानी

गाँव की सुबह हमेशा से ही ताजगी भरी होती थी, लेकिन सविता की ज़िंदगी में पिछले कुछ सालों से सुबह के उजाले में भी अंधेरा पसरा हुआ था। सविता, जो कभी गाँव की सबसे खुशहाल और चहकती महिला हुआ करती थी, अब एक शांत और उदास चेहरा बनकर रह गई थी। पति की अचानक मौत के बाद उसकी ज़िंदगी एक खालीपन में डूब गई थी। उसके दो बच्चे, रोहित और पूजा, ही अब उसका एकमात्र सहारा थे।

सविता के पति राजेश गाँव के एक छोटे से किसान थे। मेहनत-मजदूरी से जैसे-तैसे परिवार का पेट भरते थे, पर उनकी आकस्मिक मृत्यु ने सविता के जीवन को उलट-पुलट कर रख दिया। सविता के पास खेतों की देखभाल और बच्चों की परवरिश की ज़िम्मेदारी आ गई थी। सविता पढ़ी-लिखी नहीं थी, लेकिन अपने बच्चों को पढ़ाना चाहती थी, ताकि वे एक अच्छा भविष्य बना सकें और उसके जैसे संघर्षमय जीवन से बच सकें।

दिन बीतते गए, और सवि ता ने खेती की बागडोर संभाल ली। रोज़ सुबह खेत में जाती, मिट्टी से खेलती, धूप में जलती, लेकिन उसके चेहरे पर थकान के बजाय एक उम्मीद का साया रहता। वह जानती थी कि यही मेहनत उसके बच्चों को भविष्य में उड़ान देगी। सवि ता के खेत में उगी हर फसल उसे उसके बच्चों की खुशहाल जिंदगी की झलक दिखाती थी।

रोहित और पूजा स्कूल जाते, जहाँ वे सवि ता की उम्मीदों को बढ़ाते। दोनों बच्चे पढ़ाई में अच्छे थे और हमेशा स्कूल के टॉपर्स में गिने जाते। सवि ता की हर सुबह उनके उज्जवल भविष्य की दुआ के साथ शुरू होती और रात उन पर गर्व करके समाप्त होती। लेकिन आर्थिक तंगी ने सवि ता के सपनों को साकार करना मुश्किल कर दिया था।

वह दिन भी आया जब रोहित ने दसवीं की परीक्षा में टॉप किया। गाँव भर में उसकी तारीफों के पुल बांधे गए, और उसकी सफलता ने सवि ता के सीने को गर्व से भर दिया। लेकिन उसकी खुशी उस वक्त गहरी चिंता में बदल गई जब उसने सुना कि रोहित को आगे की पढ़ाई के लिए शहर जाना पड़ेगा। गाँव में केवल दसवीं तक ही स्कूल था, और शहर जाकर पढ़ने के लिए बहुत सारे पैसे चाहिए थे। सविता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह अपने बेटे को शहर भेज सके, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।

सविता ने अपने घर के सारे गहने बेच दिए। उसने वह सारा पैसा इकट्ठा किया जो उसने अब तक बड़ी मुश्किल से बचाया था। रोहित को शहर भेजने का यह निर्णय उसके लिए बहुत कठिन था, लेकिन उसके दिल में अपने बेटे के उज्जवल भविष्य के लिए गहरी आस्था थी। रोहित भी जानता था कि उसकी माँ ने उसके लिए कितना बलिदान दिया है। वह अपने आप से वादा कर चुका था कि वह अपनी माँ के सारे सपने पूरे करेगा।

शहर में रोहित का दाखिला हुआ। शहर का माहौल गाँव से बिलकुल अलग था, पर रोहित ने खुद को वहाँ ढाल लिया। वह दिन-रात मेहनत करता, किताबों में डूबा रहता, ताकि उसकी माँ की कुर्बानियों का फल मिल सके। सवि ता ने अपने बेटे को कभी शिकायत का मौका नहीं दिया, हालाँकि अब उसे खेतों में अकेले ही काम करना पड़ता था। उसका स्वास्थ्य भी धीरे-धीरे खराब हो रहा था, पर वह अपनी तकलीफों को छिपाकर बच्चों को सिर्फ हिम्मत और प्यार देती।

पूजा, जो अब बारहवीं कक्षा में थी, भी अपनी माँ की मदद करती। वह घर के कामकाज में हाथ बंटाती और पढ़ाई भी करती। उसकी एक ही इच्छा थी कि उसकी माँ को और तकलीफ न हो। सविता ने अपने बच्चों को सिखाया था कि जीवन में कठिनाइयाँ आएँगी, पर मेहनत और ईमानदारी से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। पूजा भी इस सीख को अपने जीवन में उतार रही थी।

समय बीतता गया। रोहित ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली और उसे एक बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई। वह जब पहली बार अपनी माँ से मिलने गाँव आया, तो सविता की आँखों में खुशी के आँसू थे। उसकी मेहनत रंग लाई थी। उसने अपनी सारी ज़िंदगी जिस सपने के सहारे जी थी, वह अब सच हो चुका था। रोहित अब एक बड़ा आदमी बन चुका था, लेकिन उसके दिल में अपनी माँ के लिए वही प्यार और सम्मान था जो पहले था।

सविता ने अपने जीवन का सबसे बड़ा सपना पूरा होते देखा। रोहित ने अपनी पहली तनख्वाह से माँ के लिए एक नया घर बनवाया। उसने अपनी माँ को कभी और मेहनत न करने का वादा किया। पूजा ने भी अपनी पढ़ाई पूरी की और वह एक टीचर बन गई। अब सवि ता के दोनों बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो चुके थे, और सविता के लिए यह सबसे बड़ी खुशी थी।

लेकिन एक दिन अचानक सविता की तबीयत बहुत खराब हो गई। उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। रोहित और पूजा भागते हुए अस्पताल पहुंचे, लेकिन डॉक्टरों ने कहा कि अब सवि ता का ज्यादा समय नहीं बचा। यह सुनते ही रोहित और पूजा की दुनिया जैसे उजड़ गई। उन्होंने अपनी माँ से वादा किया था कि वह कभी उसे दुखी नहीं होने देंगे, लेकिन अब वह कुछ नहीं कर सकते थे।

सविता ने अपनी आखिरी साँसों में रोहित और पूजा को पास बुलाया और कहा, “बेटा, मैंने अपनी ज़िंदगी में बहुत संघर्ष किया, लेकिन तुम दोनों ने मेरी मेहनत का फल मुझे दिया है। तुम दोनों ही मेरी सबसे बड़ी जीत हो। मुझे गर्व है कि तुम मेरे बच्चे हो।”

रोहित और पूजा की आँखों से आँसू बह रहे थे, लेकिन उनकी माँ की बातों में असीम शांति थी। सवि ता ने अपने बच्चों के हाथों को कसकर पकड़ लिया और दुनिया को अलविदा कह दिया।

उस दिन रोहित और पूजा ने अपनी माँ के सामने वादा किया कि वे हमेशा एक-दूसरे का साथ देंगे और उसकी शिक्षा को कभी नहीं भूलेंगे।

सवि ता की मौत के बाद रोहित और पूजा ने अपनी माँ के उस खेत को फिर से हरा-भरा किया, जहाँ से उनका सफर शुरू हुआ था। उस खेत की मिट्टी में सविता के संघर्ष की महक थी, और अब वह खेत उनके परिवार की नई पीढ़ियों के सपनों की बुनियाद बन चुका था।

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