Religion

गुरु अंगद देव जी सिख धर्म के दूसरे गुरु

गुरु अंगद देव

गुरु अंगद देव जी सिख धर्म के दूसरे गुरु थे, जिन्हें गुरु नानक देव जी का उत्तराधिकारी चुना गया था।

उनका जन्म 31 मार्च 1504 को पंजाब के वर्तमान फतेहाबाद जिले के एक गाँव हरिके में हुआ था। उनका वास्तविक नाम लहणा था। वे एक साधारण किसान परिवार से आते थे और बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। लहणा जी के पिता का नाम फेरू मल था, जो एक व्यापारी थे। उनकी माता का नाम माता रामो देवी था। उनका विवाह माता खीवी के साथ हुआ, जिनसे उनके दो पुत्र (दातू और दसु) और दो पुत्रियाँ (अमरो और अनोखी) हुईं।

गुरु अंगद देव जी के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब वे गुरु नानक देव जी से मिले। लहणा जी शुरू में देवी दुर्गा के भक्त थे और नियमित रूप से उनकी पूजा करते थे। लेकिन जब उन्होंने गुरु नानक देव जी के बारे में सुना, तो वे उनसे मिलने के लिए कर्तारपुर पहुंचे। गुरु नानक की शिक्षाओं ने लहणा जी को गहराई से प्रभावित किया, और वे उनके अनुयायी बन गए। गुरु नानक के व्यक्तित्व और विचारधारा से प्रेरित होकर उन्होंने अपने पुराने धार्मिक विश्वासों को त्याग दिया और सिख धर्म के मार्ग पर चलने लगे। गुरु नानक जी ने उनकी भक्ति, सेवा और समर्पण को देखकर उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुना और उन्हें नया नाम अंगद दिया, जिसका अर्थ है “शरीर का अंग”। इस प्रकार, लहणा जी गुरु अंगद देव के नाम से विख्यात हुए।

गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं को न केवल आगे बढ़ाया, बल्कि उन्हें व्यापक रूप से फैलाने का महत्वपूर्ण कार्य भी किया। उनका सबसे बड़ा योगदान गुरमुखी लिपि का विकास और प्रचार-प्रसार था। उन्होंने पंजाबी भाषा को सरल और सुलभ बनाने के लिए गुरमुखी लिपि को प्रचलित किया। इससे पहले, पंजाबी भाषा को लिखने के लिए मुख्य रूप से लंदन या संस्कृत लिपि का उपयोग किया जाता था, जो आम जनता के लिए समझना और लिखना मुश्किल था। गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को सरल बनाया ताकि साधारण लोग भी इसे आसानी से समझ और पढ़ सकें। गुरमुखी लिपि ने न केवल सिख धर्म के ग्रंथों को सुरक्षित रखा, बल्कि पंजाब में शिक्षा और साक्षरता के प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

गुरु अंगद देव जी का दूसरा प्रमुख योगदान लंगर प्रथा का विस्तार और सुदृढ़ीकरण था। गुरु नानक देव जी द्वारा आरंभ की गई लंगर प्रणाली, जिसमें हर जाति, धर्म और समाज के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे, को गुरु अंगद देव जी ने और अधिक सशक्त बनाया। लंगर प्रणाली सिख धर्म का एक अभिन्न हिस्सा बन गई और इसे सामुदायिक सेवा, समानता और भाईचारे का प्रतीक माना जाने लगा। इस प्रणाली के माध्यम से उन्होंने समाज में व्याप्त जाति और वर्ग भेदभाव को समाप्त करने की कोशिश की। गुरु अंगद देव जी ने इस बात पर जोर दिया कि सभी मनुष्यों को समान समझा जाना चाहिए और किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।

गुरु अंगद देव जी ने अपने जीवन के माध्यम से समाज को कई महत्वपूर्ण संदेश दिए। उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को ईमानदारी, मेहनत और समर्पण के साथ अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। उनका मानना था कि सच्चा जीवन वही है जिसमें इंसान सेवा और परोपकार के काम करता है। वे हमेशा लोगों को सिखाते थे कि भगवान का नाम जपना, सत्य बोलना और दूसरों की मदद करना ही सिख धर्म की असली भावना है। गुरु अंगद देव जी ने लोगों को सिखाया कि जीवन में कभी अहंकार नहीं होना चाहिए और हमें हर स्थिति में धैर्य और सहनशीलता के साथ काम करना चाहिए।

गुरु अंगद देव जी ने बच्चों के लिए खेल और व्यायाम को भी बढ़ावा दिया। उनका मानना था कि शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक विकास के लिए खेल आवश्यक हैं। उन्होंने कुश्ती जैसे खेलों को प्रोत्साहन दिया और बच्चों को खेलों के माध्यम से अनुशासन, समर्पण और परिश्रम की सीख दी। उनका जीवन सादगी और सेवा का प्रतीक था, और वे हमेशा समाज के कमजोर और जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए तत्पर रहते थे।

गुरु अंगद देव जी का जीवन हमें यह सिखाता है कि किसी भी धर्म या समाज में सेवा और समर्पण का कितना महत्वपूर्ण स्थान होता है। उन्होंने यह संदेश दिया कि सच्ची भक्ति वही है जिसमें मनुष्य निस्वार्थ रूप से दूसरों की भलाई के लिए काम करे। गुरु अंगद देव जी ने अपने पूरे जीवन में गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का अनुसरण किया और उन्हें व्यापक रूप से फैलाया।

उनकी मृत्यु 29 मार्च 1552 को खडूर साहिब में हुई। उनके निधन के बाद, गुरु अमर दास जी को सिखों के तीसरे गुरु के रूप में नियुक्त किया गया। गुरु अंगद देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ आज भी सिख धर्म और पूरे समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके द्वारा प्रचारित समानता, सेवा, और धर्म की भावना आज भी सिख समुदाय के मूलभूत सिद्धांतों का हिस्सा हैं। उनके जीवन से हमें यह संदेश मिलता है कि किसी भी समाज में परिवर्तन और विकास तब ही संभव है जब लोग एक-दूसरे के प्रति प्रेम, आदर और सम्मान का भाव रखें।

You may also like

navratri
Religion

Navratri

Photo by Sonika Agarwal on Unsplash Navratri Thu, 3 Oct, 2024 – Sat, 12 Oct, 2024 Navratri is celebrated in
Religion

Shailputri Mata: The First Form of Goddess Durga

The first of the nine goddess forms reverberating during the Hindu festival of Navratri is Shailputri Mata. She is also
Promotion Web Series Top 7 Best Upcoming Top 5 AI Photo Editing Website Names Maa Brahmacharini